सामाजिक

बधाई, बधाई, बधाई

आप सभी को बधाई ,बधाई और बधाई।
अब ये मत पूछिएगा कि किस बात की बधाई। अरे भाई ! ये भविष्य के लिए अग्रिम बधाई है ,सहेज कर रखिए। क्या पता कल मेरा विचार बदल जाये और आप मेरी बधाई की प्रतीक्षा में अपना बी.पी. बढ़ा बैठें।
वैसे किसी से कहिएगा मत। ये बधाई महज औपचारिकता है, दिखावा है, दुनिया को दिखाने के लिए सिर्फ़ रश्म भर है। वरना कौन किसे दिल से बधाइयाँ देता है। मैं तो नहीं देता, भला आपकी उपलब्धि, सफलता, खुशी से मेरा तो कुछ भला होने वाला है नहीं। वैसे भी जैसे को तैसा वाला सिद्धांत हर जगह लागू है ही। आपने ही कौन सा बड़ा दिल दिल दिखाया था। जब मैं मौत को पछाड़ने में लगा था, तब तो आप दूर से खड़े तमाशा ही देख रहे थे, ईमानदारी से मेरे टिकट कन्फर्म होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। मगर अफसोस अभी तक वेटिंग ही चल रही है। विवश होकर आपने फोन पर मजबूरन में बधाइयाँ दी थी।
खैर ! ये सब तो चलता रहेगा। टाँगे खींची जाती रहेंगी, मन से बद्दुआओं का सिलसिला चलता रहेगा। तालिबानी संस्कृति का बोलबाला यूँ ही चलता रहेगा, मार्ग में काँटे बिछाए जाते ही रहेंगे।
आपका जीवन हमेशा अंधकारमय हो, खुशियाँ आपके जीवन से सात जन्मों तक दूर रहें, आपके जीवन में सुकून और शांति का एक कतरा भी न आये…….। कुछ ऐसा वास्तव में मेरा अंतर्मन कहता है। फिर भी गल्ती से यदि दुर्भाग्य से एक पल के लिए भी आपके जीवन में बधाइयाँ देने जैसा कुछ हो ही जाय ,तो उसके लिए मैंनें अग्रिम बधाइयों का पुलिंदा सौंप ही दिया है। उसी से काम चलाते रहिएगा।
लगता है मेरी बधाइयाँ आपको अच्छी नहीं लगीं, मगर मैं भी क्या करुँ, मजबूरी है, वरना लोग ताने मार मारकर जीना दूभर कर देते कि एक अदद बधाई देने में भी मैं कितना कंजूस हूँ, पर मेरी भी विवशता है। औपचारिक बधाइयों की लिस्ट बहुत लंबी है।
क्षमा करें, अब मुझे जाना होगा,
औपचारिक बधाइयों के लिए दूसरे का द्वार भी खटखटाना है। ये अलग बात है आखिर झूठ मूठ ही सही दुनिया को दिखाना ही है।आप मरो, या जियो, मुझे क्या? मैंनें मजबूरी वश बधाइयाँ का कोटा पूरा कर दिया, अब आप जानों आपका काम जानें। मेरी बला टली।
वैसे भी शंका तो मुझे अभी भी है कि बधाइयों का लोभ अभी भी आपको है।ऐसा लगता है कि बेमन से दी गई बधाइयाँ भी आपको रास आ रही हैं।कोई बात नहीं, चिंता मत कीजिये, मैं आता रहूंगा, बधाइयाँ देता रहूंगा।
पुनः बधाई, बधाई और बधाई। भले ही खुशियाँ /सफलताएं आपके जीवन में कभी न आईं। फिर भी मेरी ओर से ढेरों बबबधधधधाधाईईईइ।

*सुधीर श्रीवास्तव

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