गीत
चलों मन ! लौट चले उस ठाँव ।
जहाँ बसता है मेरा गाँव ।
जहाँ माटी की सोंधी महक।
झींगुरों की रातो की झनक।
लुभाते मन को काले मेघा ,
डराती चपला नभ मे चमक।
जहाँ बलखाती नदिया बीच,
काँपती मछुआरे की नाव ।
चलों मन ! लौट चलें……….
जहाँ है भादौं की बरसात ।
जहाँ है कजरी वाली रात ।
जहाँ धानों के महके खेत,
जहाँ फूले सुंदर जलजात ।
जहाँ चातक स्वाती का मीत ,
जहाँ काले कौवे की काँव ।
चलो मन लौट चले……….
जहाँ कजरारे कारे नैन ।
शहद के जैसे मीठे बैन।
नाग के जैसे काले केश,
चुरा लेते हैं मन का चैन ।
महावर करे धरा को लाल,
जहाँ पर गोरी रखती पाँव ।
चलो मन ! लौट चले……….
हमारी राय-
चलों मन ! चलो की बिंदी हटा दीजिए, मन के बाद , लगाया जा सकता है.
चलो मन,
बहुत बढ़िया गीत- ”चलों मन ! लौट चले उस ठाँव ।
जहाँ बसता है मेरा गाँव ।”