विचित्र होते हैं अधिकारी !
ऐसे कई सारे ‘पदाधिकारी’ (Officers) हैं, जो या तो सचमुच में जानकारीविहीन हैं या अभी भी सामंतों की तर्ज पर व राजे-रजवाड़े की तरह दूसरे की बात सुनना पसंद नहीं करते हैं!
ऐसे चिरंजीवी ऑफिसर्स माननीय हाई कोर्ट की नोटिस के बारे में भी जानते तक नहीं कि किसप्रकार के नोटिस का क्या अर्थ होता है! किसी चिट्ठी का तामिला क्या होता है, उनसे भी वे अनभिज्ञ होते हैं !
ऐसे पदाधिकारी या तो ‘आलसी’ की तरह या ‘दबंग’ की तरह नोटिस को इसतरह लेना चाहते हैं, जैसे- उनके ससुर की दूसरी बार शादी हो रही है और इस शादी का ‘आमंत्रण-पत्र’ ससुराल के ही ‘नाई’ या ‘नाइन’ के मार्फ़त ही प्राप्त हो!
ऐसे अधिकारी पर ‘अवमानना’ तो निश्चित ही लगे ! जो तालाब को गंदी करनेवाली ‘पोठी’ मछली है !
कोई ‘विधायक’ बिना इस्तीफ़े दिए ‘सांसद’ का चुनाव लड़ सकते हैं, तो प्राइमरी, मिडिल, हाईस्कूल के नियोजित शिक्षक ऐसा क्यों नहीं कर सकते?