आशीर्वाद
”माई, आज दीपक बेच रही हो, थोड़े दिन पहले तक तो पेन बेच रही थीं!” दिनेश ने पूछा.
”जी हां बाबू सा, दिवाली आने वाली है, सब दिए जलाएंगे, सारा शहर रोशन होगा, तो हमारा घर भी रोशन हो जाएगा.”
”माई ने बड़ी गहरी बात कह दी.” दिनेश ने मन-ही-मन सोचा और मन में एक योजना ने जन्म लिया.
”कितने दिए हैं आज आपके पास?”
”500 बाबू सा.”
”ये मैं ले जाता हूं, कल कितने मिलेंगे?”
”1000 तो मिल ही जाएंगे, आज घर जल्दी जाऊंगी तो मैं भी बना पाऊंगी.” माई के चेहरे पर आशा की सुनहरी मुस्कान थी.
”ठीक है, मुझे ठिया बता दो, मैं वहीं से ले जाऊंगा. आपको यहां आना भी नहीं पड़ेगा.” माई का मन भी खिल उठा. अभी दिवाली में दस दिन हैं, तब तक कितना रोजगार हो जाएगा? वह मन-ही-मन हिसाब लगाने लगी थी.
”बाबू सा, इतने दियों का क्या करोगे?” एक दिन माई की जिज्ञासा मुखर हो उठी.
”मैं अपने मुहल्ले के हर घर में 100 दिए-बाती दे रहा हूं, ताकि लोग दिए जलाएं, चीन की लड़ियां नहीं.”
”बाबू सा, ये तो बड़ो चोखो काज है! पण तेल को के होएगो!” माई के चेहरे की चमक खिल गई थी.
”जिनके पास तेल के पैसे नहीं हैं, उन्हें तेल के पैसे भी दे रहा हूं.”
”यां को मुहल्लो तो रोशन हो जाएगो, पण म्हारी झोंपड़ी को के होएगो?” माई की सोच रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.
”माई, दियों की खरीद अब खत्म हुई. ये लीजिए 50 दिए आप रख लीजिए, ये बातियां और तेल.” थैले से तेल की शीशी निकलते हुए दिनेश ने कहा.
माई हैरान थी. आज तलक तो ऐसा नहीं हुआ!
”माई, कल दिवाली है. दिए धोकर साफ करके रख देना, मैं आकर पहले तुम्हारा निवास रोशन करूंगा, फिर अपने घर की दिया-बाती करूंगा.”
माई की आंखें झर-झर नीर बहा रही थीं. उन अश्रुकणों की धार में दिनेश को आशीर्वाद की चमक दिखाई दे रही थी. मानो कह रही हों, ”गरीब के घर को रोशन करने वाले पर लक्ष्मी मां आपनी कृपा बनाए रखें.”