ग़ज़ल
मुद्दत के बाद फूल खिले मुस्कराये हम
आँसू कहाँ किधर गये जो खिलखिलाये गम
बुझने लगे चिराग तो उम्मीद जल उठी
जुगनू भी झिलमिलाए मगर जगमगाए कम
हमने हर इक मोड़ पर आवाज दी तुम्हें
ये और बात आ न सके हिचकिचाए तुम
आते ही उनके बज्म में बिखरी है रोशनी
लट को सँवारने में बड़े छटपटाये खम
सच की सुगन्ध से भरा देखा वजूद तो
मिलने से पहले हमसे जरा थरथराए भ्रम
चल के नहा लें शान्त उन आँखों की झील में
ऐसा न हो कि यकबयक बरसात जाए थम
— देवकी नन्दन ‘शान्त’