आँसुओं को मैं ईंधन बनाती रही
आँसुओं को मैं ईंधन बनाती रही
तेरी यादों के दीपक जलाती रही।
होंठ हर पल तेरा नाम गाते रहे
मुस्कुराते हुए ग़म छिपाते रहे
है वो पल कौन सा जब न तू साथ था
स्वप्न में भी तुझे मैं बुलाती रही
तेरी यादों के दीपक जलाती रही।1।
जग मनायेगा दीवाली इक दिन प्रिये
पर जलाती मैं हर पल नज़र के दीये
तेरी यादों की रंगीन रंगोली से
मन का आँगन मैं पल-पल सजाती रही
तेरी यादों के दीपक जलाती रही।2।
अब तो दोपहरी जैसे अमावस लगे
सो गये भाग मेरे जो तुम संग जगे
गीत भूली मिलन के सभी मैं सनम
बस विरह – वेदना गुनगुनाती रही
तेरी यादों के दीपक जलाती रही।3।
अब न होगी ‘शरद’ रात की चाँदनी
अब न होगी मधुर मास की रागिनी
अब न खनकेगी हाथों में चूड़ी कभी
माथे की बिंदिया आँसू बहाती रही
तेरी यादों के दीपक जलाती रही।4।
शरद सुनेरी