कविता

पत्थर नहीं इंसान हूं

मैं वहां अकेली गयी,पर ना आयी अकेली
उसकी यादें आयी बन कर के सहेली।
कहते हैं खो जाओ मेरे ख्वाबों खयालों में,
मत उलझो दुनिया के तमाम सवालों में।
मैं कोई शीशा नहीं,पत्थर नहीं इंसान हूं ,
तेरी जिंदगी का एक खूबसूरत एहसास हूं ।
मेरे इरादों पर कभी कोई शक नहीं करना,
गर कभी बिछड़ भी जाऊं तो गम नहीं करना।
यादों के मेले रहेंगे सदा साथ तुम्हारे,
परछाइयों के रेले रहेंगे हृदय में तुम्हारे।
जब आकाश को घेरेंगी काली घटाएं,
समझना बिखरी हुई हैं मेरी ही इच्छाएं ।
बादलों से रिमझिम रिमझिम बरसेगीं बूंदे
तो देखना कल्पनाओं में आंखों को मुंदें।
तनहाई में भी,कहां तन्हाई है ?
यादों की जहां बचती शहनाई है।

— डाॅ. शीला चतुर्वेदी ‘शील’

डॉ. शीला चतुर्वेदी 'शील'

प्रधानाध्यापक आदर्श प्राथमिक विद्यालय, बैरौना, देवरिया एक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए मैं सामाजिक व कई शैक्षिक संगठनों से भी जुड़ी हुई हूं एवं इसके साथ ही एक कुशल गृहणी भी हूं। वर्तमान में (SRG) राज्य संसाधन समूह के पद पर कार्यरत हूँ । शैक्षिक योग्यता- M.Sc., M.Phil(Physics), B.Ed, Ph.D. साहित्य में भी रुचि रखती हूँ।