कविता

जीवन

जीवन को समझने के लिये,
बड़ा मन को तोड़ना पड़ता है,
हाँ,बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है।
कुछ दर्द संभालने पड़ते हैं,
कुछ मौन पहनने पड़ते है,
कुछ भंग रमानी पड़ती है,
कुछ सेंध लगानी पड़ती है,
कभी अभिमन्यु सा
घिरना पड़ता है,
कभी राम सा जीतना पड़ता है,
कुछ गिर-गिर कर,
कभी चल-चल कर
काँटो को निकालना पड़ता है
है डगर बहुत है कठिन मगर
तो व्यर्थं न चिंता किंचिद कर
कुछ पाने को कुछ खोना है
कुछ खोकर ही तो पाना है
आकाश भेदने के ख़ातिर
मन को भी झुकाना पड़ता है
हाँ राम के पथ पर चलकर ही
हुँकार भी नभ से मिलती है,
सागर भी शीश नवाता है,
ये जग भी शीश झुकाता है..
इतने संघर्षों पर तब
राम की गाथा गूंजती है
फिर बात वही से उठती है कि
जीवन की जो एक कुंजी है
तन को ही नही मन को भी
झुकाना पड़ता है
हाँ सच है जीवन को
समझने के लिये
बड़ा मन को तोड़ना पड़ता है,
हा बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है।
— डिम्पल राकेश तिवारी

डिम्पल राकेश तिवारी

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री अवध यूनिवर्सिटी चौराहा,अयोध्या-उत्तर प्रदेश