कविता

उम्मीद

जीवन की तमाम असफलताएं जब हौसलों को कुचलती हैं तो फिर उसी कोने से उठती हैं ये कमबख्त उम्मीद। सच है उम्मीद से कुछ नही होता पर घुप्प अंधेरे में सुलगती हुई बीड़ी हैं ये उम्मीद। बाकमाल होती हैं उम्मीद भी न टूटने देती हैं न रुकने हिमालय से लड़ जाने की हिम्मत हैं ये […]

कविता

जीवन

जीवन को समझने के लिये, बड़ा मन को तोड़ना पड़ता है, हाँ,बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है। कुछ दर्द संभालने पड़ते हैं, कुछ मौन पहनने पड़ते है, कुछ भंग रमानी पड़ती है, कुछ सेंध लगानी पड़ती है, कभी अभिमन्यु सा घिरना पड़ता है, कभी राम सा जीतना पड़ता है, कुछ गिर-गिर कर, कभी चल-चल कर काँटो […]

कविता

छुआ तुमने मन

कहो किसी विधि से छुआ तुमने मन हृदय में कोई भी समाता नही ये सच है हृदय बहक जाता किंतु किसी द्वार पर ये ठहरता नही… नशीले नयन हों या दैहिक पवन हों सागर की उठती उतरती लहर हो मगर कोई जादू छलता नही मेरे मन का कामी मचलता नही ये बादल तो ऐसा बचे […]

कविता

रक्षाबंधन

राखी के रेशम धागों में .. जज़्बातों मे गहरा वज़न टिका, वह रिश्ता सबसे प्यारा  है.. जिस मे रक्षा का है वचन जुड़ा। रक्षाबंधन पर्व हर वर्ष हो.. इस रीत से सबका ह्रदय जुड़ा, भाई बहन का एक ही मन है.. अद्वितीय सूत्र की गाँठ बँधा। कैसे भावनाएँ जन्म ले भीतर..? कैसे उत्पन्न परवाह हो..? […]

कविता

खुद का पता

मेरे पिता का एक पता है मेरे पति का भी एक दिन मेरे भाई और पुत्र के भी पते होंगें पर मेरा निजी कोई पता नहीं इन सब पतों पर जहाँ भी मैं रहती आई लापता रही मैं सबसे छोटी इकाई पर अपना नाम लिखा देखना चाहती हूँ मैं चाहती हूँ एक पते पर मेरा […]

कविता

रिश्तों में परिवर्तन

अक्सर रिश्तों को रोते हुए देखा है, अपनों की ही बाँहो में मरते हुए देखा है। टूटते, बिखरते; सिसकते, कसकते रिश्तों का इतिहास, दिल पे लिखा है बेहिसाब प्यार की आँच में पक कर पक्के होते जो, वे कब कौन सी आग में झुलसने लगते हैं, झुलसते चले जाते हैं और राख हो जाते हैं […]

कविता

दौड़ता बचपन

आगे आने वाला शहर, कितना ही पसंदीदा क्यू न हो,पीछे छूटने वाला घर, बेचैन कर ही देता है,अनगिनत यादें बातें समेटे हुए, खड़ा होता है घर कोना-कोना,नए शहर की सुबह, बेशक दिलचस्प और, रहस्यमयी होती हैं।पर पुराने घर की शाम, याद आते ही, नज़रे ख़ुद ब ख़ुद भीग जाती हैं,नए शहर की गलियां, कितनी ही […]

कविता

खुद की तलाश

आईना खुद की तलाश में एक रोज़ हम आइने से मिले,आइना मुझसे मिलकर चौक गया, ख़ुद को खुद से मिलाकर, मैं भी खुश थी। पर अनगिनत सवाल हम दोनों की, निग़ाहों में तैर गए। जैसे क्या हम साथ होकर साथ है?एक सदी से हम मिले ही नही,जुदा भी न हुए औऱ साथ भी न रहे।जाने […]