गीत/नवगीत

पापा मैं गुड़िया हूँ

पापा मैं गुड़िया हूँ तुम्हारी गर्व और पहचान हूँ,
खेल खिलौने साथी मेरे कोमल और नादान हूँ।
शीतल छाया माँ की मुझको हर पल है सहलाती,
आप की गोदी पाकर मैं और नटखट हो जाती,
दुनियां की दुर्दम्य लालसा से बिल्कुल अन्जान हूँ,
खेल खिलौने साथी मेरे कोमल और नादान हूँ।
गुड्डे गुड़ियो की बारातें धूम धाम से सजाती,
ब्याह रचाती उनका मैं खुद बाराती बन जाती,
रीति रिवाज मैं न जानू नियमों से आजाद हूँ,
खेल खिलौने साथी मेरे कोमल और नादान हूँ।
अभी तो मेरे पंख है निकले उड़ना नील गगन है,
नयनों में है लक्ष्य बसा मुझे छूना ज्ञान शिखर  है,
बाधों न मुझको बन्धन में मैं तेरी ही पहचान हूँ,
खेल खिलौने साथी मेरे कोमल और नादान हूँ।
छोटी उम्र में पापा मुझको ब्याह नहीं सकते आप,
नन्हीं सी गुड़िया हूँ तुम्हारी मार नहीं सकते है आप,
वसुधा पर लाए मुझको तुम मैं तेरा स्वाभिमान हूँ,
खेल खिलौने साथी मेरे कोमल और नादान हूँ।

— सीमा मिश्रा

सीमा मिश्रा

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार, उ0प्रा0वि0-काजीखेड़ा,खजुहा,फतेहपुर उत्तर प्रदेश मै आपके लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका से जुड़कर अपने लेखन को सही दिशा चाहती हूँ। विद्यालय अवधि के बाद गीत,कविता, कहानी, गजल आदि रचनाओं पर कलम चलाती हूँ।