रोती आँखों को हमेशा इंतजार रहती है
दिल नहीं, दीप जलाएं : किन्तु दीप बनानेवाले ‘कुम्हार’ के प्रति दिल देकर! दीपावली एक संदेश है, इसी के बहाने यह त्योहार है!’धर्म’ जो हो, किन्तु यह त्योहार ‘वैज्ञानिकता’ लिए है! वर्षा ऋतु के बाद कीड़े-मकोड़े की अत्यधिक संख्या बढ़ने से तथा अमावस्या की अँधेरी रात एक साथ सब घर में तेल के दीये जल उठने से ये सभी कीड़े-मकोड़े इन जलती दीपकों की ओर खींचे चले जाते हैं और आग में स्वाहा हो जाते हैं। इसप्रकार, प्राचीन भारत में भी हिन्दू समाज ‘वैज्ञानिक सोच’ अवश्य रखते थे, किन्तु आज चारों तरफ अवैज्ञानिकता हावी है।
लोग बिजली के बल्ब जलाते हैं, किन्तु गरीब कुम्हार और उनकी कला से सृजित दीपक को भूलते जा रहे हैं ! जो शुद्ध है, क्योंकि यह वैज्ञानिकता लिए है । एतदर्थ, माटी के दीये नहीं अपनाकर व सरसों के तेल का दीपक नहीं जलाकर हम बिजली के अलावा ‘मोमबत्ती’ को जलाते हैं, क्योंकि मोमबत्ती धर्मोदय के समय नहीं था ! फिर हम किस आस्था की बात करते हैं ?
किसी के आजीविका को तिरोहित करना ‘धर्म’ नहीं हो सकता ! क्या हम कुम्हार बन्धुओं के लिए ‘अप्पो दीपो भव:’ बन उनके लिए मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं? अगर हाँ, तब आपके लिए है-
“शुभो दीपावली,
तवे सुरक्षित दीपावली!
तेरह सौ करोड़ कमाए
बनियाओं ने इस धनतेरस में,
इधर नियोजित शिक्षकबंधु
धन के लिए तरस रहे!
मुझे उनसे भी प्रेम है,
जो न तो ‘आईब्रो’ बनाती हैं,
न ही लिपस्टिक लगाती हैं !
छल के दीपक नहीं जलाया मैंने !
सिर्फ़ एमएलए, एमपी बनने का
हठ किया मैंने !
रोती आँखों को हमेशा
इंतज़ार रहती है;
न जाने कैसे किसी से
प्यार हो जाती है ?
कुछ दिनों से मुझे
महसूस हो रहा है,
‘राष्ट्र’ से भी बड़ा ‘महाराष्ट्र’ है,
आपको भी महसूस हो रहा है।”