बाल कविता

बच्चे सबको प्यारे लगते।

बच्चे सबको प्यारे लगते।
माँ को राज दुलारे लगते।
इन में ही भगवान मिलेगा।
इक सच्चा इन्सान मिलेगा।
घर में चाँद सितारे लगते।
बच्चे सब को—-।
इतने भी नादान नहीं हैं।
हँसते हैं शैतान नहीं हैं।
देखन को बेचारे लगते।
बच्चे सब—-।
आपस में सब खेल रहे हैं।
रेल के डिब्बे मेल रहे हैं।
रंग-ब-रंग गुब्बारे लगते।
बच्चे सब—।
इन से ही संसार बना है।
जग के भीतर प्यार बना है।
मन्दिर-गुरूद्वारे लगते।
बच्चे सब—।
’बालम‘ विभिन्न पोशाकों में।
बँधे हुए हैं धागों में
वाह, रंगीन फुव्वारे लगते।
बच्चे सबको प्यारे लगते।

— बलविन्दर ’बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409