हँसना मना थोड़े ही है
कवि श्री प्रशांत चौधरी की कलम से दर्द देखिए लालू के लाल का, यथा-
“तुम पिज्जा खाकर पली बढ़ी,
मैं सतुआ, मडूआ, घोर प्रिये।
तुम राय दरोगा की पोती,
मैं सन ऑफ चारा चोर प्रिये।
तुम पेप्सी कोला पीती हो,
मैं पीता कड़वे घूंट प्रिये।
पप्पा है तेरे महलों में,
और बप्पा मेरे जेल प्रिये।
तुम एमबीए तक पढ़ी हुई,
और मैं हूं 9वीं फेल प्रिये।
नहीं तेल बचा अब लालटेन में,
अब ढोल में है बस पोल प्रिये।
है चमक चांदनी रूप तेरा,
मैं बेलूरा, बकलोल प्रिये।
अब साथ रहे या रहे अलग,
लगता नहीं कोई भेद प्रिये।
कहकर मिलार्ड से करवा दो,
अपना संबंध -विच्छेद प्रिये।”
अब मेरी लेखनी यह वमन कर रही है-
“दीवाली से याद आया
यह एशियन पेंट्स
भले ही
पाँच साल नहीं चल पाए,
परन्तु उसकी बाल्टी
10 साल नहाने के काम
जरुर आती है!
हँस दीजिए, भाई !
हँसना मना थोड़े ही है।”
यह एशियन पेंट्स
भले ही
पाँच साल नहीं चल पाए,
परन्तु उसकी बाल्टी
10 साल नहाने के काम
जरुर आती है!
हँस दीजिए, भाई !
हँसना मना थोड़े ही है।”
वाह!