ग़ज़ल
कुछ तो अच्छी आदत रखिए,
थोड़ी-बहुत नज़ाकत रखिए
गैर भी अपने हो जाएँगे,
दिल में ज़रा रफाकत रखिए
झूठ के पाँव नहीं होते हैं,
सच कहने की हिम्मत रखिए
मिठास ज़रा सी बातों में और,
नज़रों में शराफत रखिए
जैसी संगत वैसी रंगत,
अच्छी-अच्छी सोहबत रखिए
आज का फिक्र ना कल की चिंता,
बच्चों जैसी फितरत रखिए
मिलिए सबसे जी भर के पर,
अपने लिए भी फुर्सत रखिए
— भरत मल्होत्रा