गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ये क्या हुआ के याद भी आई नहीं मेरी
क्या चाहत ए मोहब्बत भाई नहीं मेरी।

ख़ामोश यूं हुए के गुमनाम हो गए
आवाज तुम तलक क्या आई नहीं मेरी।

मुस्कान को हमारी खुशियां न समझिए
ये ना समझ के तुम बिन तबाही नहीं मेरी।

इतना भी कौन होता है मगरुर ए मोहब्बत
दीदार ए तलब तूने बुझाई नहीं मेरी।

दूर हो करीब हो तुम सांसों में बसे हो
इतना भी कम नहीं के जुदाई नहीं मेंरी।

अब याद भी कर लो बहुत दिन हुए जानिब
सुन तेरे सिवा किसी से भी सगाई नहीं मेरी ।

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर