बच्चों से सूरज की गुफ़्तगू
प्यारे बच्चो,
जय हिंद,
कहानियां तो आपने बहुत सुनी होंगी, आज मैं आपको अपने अस्त होने न होने की कहानी सुनाता हूं.
अक्सर आप लोग कहते हैं, कि सूरज डूब रहा है-उग रहा है, वास्तव में मैं न तो डूबता हूं, न उगता हूं. और-तो-और मैं चलता भी नहीं हूं. मैं तो एक जगह स्थिर रहता हूं, पृथ्वी ही मेरे चारों ओर चक्कर लगाती है, यानी परिक्रमा करती है. ऐसे में पृथ्वी का जो हिस्सा मेरे सामने आ जाता है, वहां उजाला होता है, जिसे आप दिन कहते हैं और जो हिस्सा मेरे सामने नहीं आ पाता है, वहां अंधेरा होता है, जिसे आप रात कहते हैं
अगर आप भारत में रहते हैं, तो आप जानते ही होंगे, कि मैं हर रोज आप लोगों से मिलता और बिछुड़ता दिखता हूं, पर बहुत-से देश ऐसे हैं, जहां रोज ऐसा नहीं होता. ऐसे कुछ देशों के किस्से मैं आपको सुनाता हूं.
नार्वे में मैं मई महीने से लेकर जुलाई महीने के आखिरी तक अस्त नहीं होता हूं.
कनाडा के नुनावुत शहर में मैं सिर्फ दो महीने सूर्य अस्त नहीं होता हूं, सर्दी के मौसम में यहां पर दिन नहीं होता है और सिर्फ रात रहती है.
यूरोप के सबसे बड़े द्वीप में शामिल आइसलैंड में जून में मैं कभी भी डूबता नहीं हूं, उस समय यहां 24 घंटे दिन रहता है.
अलास्का के शहर बैरो में मैं मई के अंत से जुलाई के अंत तक अस्त नहीं होता हूं. इसके बाद सर्दियों में यानी नवंबर की शुरुआत में यहां एक महीने तक रात रहती है. इस समय को पोलर नाइट्स कहा जाता है.
फिनलैंड देश के ज्यादातर इलाकों में सिर्फ 73 दिनों तक मैं निकलता हूं. सर्दियों के मौसम में यानी दिसंबर से जनवरी के बीच मैं यहां नहीं निकलता हूं. आर्टिकल सर्किल में आने वाली जगहों पर ऐसा होता है.
कल आपके यहां डूबते सूरज का पर्व छठ पर्व मनाया जाएगा, इसलिए मैंने आपको इस बारे में कुछ-कुछ बताया है, बाकी अपने अभिभावकों और अध्यापकों से पूछ-समझ लेना.
छठ पर्व की बधाइयां और शुभकामनाएं देते हुए आज मैं यहीं विराम लेता हूं.
आपका अपना
सूरज दादा