मिट्टी के दीये और कुम्हार बन्धु
कुम्हार बन्धुओं के लिए दीवाली। दीवाली के दीपकों को “कुम्हार” ने बनाया , आज उनके बनाये दीपक नगण्य बिकते हैं । माटी के दीपकों का स्थान मोमबत्ती और रंग – बिरंगी बल्बों ने ले लिया है । कुम्हार कैसे जीवन-यापन करते हैं, ये सोच किसी भी सरकारों के मेनिफेस्टों में नहीं है । इनके कलाओं को बचने-बचाने के लिए कोई सरकार आगे नहीं आ रहे हैं । ताज़ा आंकड़ो के अनुसार हरियाणा के एक सांसद, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 1-1 विधायक कुम्हार जाति से हैं।
भारत के 28+1+6 राज्यों में कुम्हार जाति के राजनीतिक प्रतिनिधियों की संख्या बस यही है । अभी-अभी बिहार विधान सभा के जो चुनाव हुआ और अबतो चुनाव-परिणाम भी आ गया है । कोई भी राजनीतिक पार्टी वालों ने कुम्हार जाति के लोगों को किसी भी विधान सभा क्षेत्र के लिए टिकट नहीं । वे सब सामाजिक समरसता की बात करते हैं , जबकि बिहार में 55 लाख से 70 लाख के बीच कुम्हारों की आबादी है , इस पर एक भी विधायक नहीं। यहाँ my कह कर मुस्लिम-यादव, फिर dmk कह कर दलित-मुस्लिम-कुर्मी को ही आगे ले जाएंगे, तो ऐसे में अन्य जाति के लोगों की राजनीतिक भलाई कैसे होगी। दलित-पिछड़ो में पासवान-यादव-कुर्मी के दबंगीयत को उभारने में ये राजनीतिक पार्टियों का ही हाथ है।
आज कुम्हार जाति से आनेवाले तीरंदाज़ दीपिका कुमारी, हॉकी कप्तान सरदार सिंह आदि की चर्चा तो है, पर राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं । मैं भी इसी जाति से हूँ तथा भारत सरकार के फेलो, फोर्ड फाउंडेशन – फाइनलिस्ट, राष्ट्रपति-प्रधानमन्त्री-मुख्यमंत्री से प्रशंसाप्राप्त कवि, आर.टी.आई. एक्टिविस्ट ; हिंदी शब्द ‘श्री’ के 2,05,00,912 तरीके के लेखक सहित कई तरह के 100 से अधिक प्रमाण – पत्र होल्डर हैं । सही बात है, चुनाव में दिमाग की नहीं, माथे की गिनती होती है । इस दीवाली में कुम्हार के लिए सोचे , माटी के दीपक से रोशनी करें और शोरमुक्त दीवाली मनाये।
दोस्तों ! मैरीकॉम मैडम दुनिया की पहली सांसद (MP) हैं, जिन्होंने किसी स्पर्द्धा में ‘स्वर्ण पदक’ जीतकर चैंपियन बनी हैं । उसपर बॉक्सिंग तो एक बेहद खतरनाक और जीवट ज़ज़्बे की स्पर्द्धा है तथा महादेश चैंपियन बनना एक बेहतर सुखद अहसास है।