कविता

समता के नव पल्लव

अंतरमन का सब तमस मिटे।
जग सघन अंधेरा कलुष हटे।।
सुख-शांति धरा में हो हर पल,
हिंसा के बंधन सहस कटें।।
समरसता के दीप जलायें।
मानवता के गीत उगायें।
नीरस आंखों में बो सपने,
महल कुटी को मीत बनायें।।
डोर नेह की कभी न टूटे।
हृदय-हाथ सम्बंध न रूठे।
तोड़ें व्यर्थ विवादों के घट,
निर्मल सत्य सरस उर फूटें।।
सरस प्रेम के शुभ सुमन मिलें।
ह‌दयों में करुणा अमन पले।
समता के नव पल्लव झूमें,
उपवन सा महके वतन खिले।।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com