कविता

ढल रही है शाम

ढल रहा है दिन का सूरज
ढल रहा है उजाले की शान
थक गया है आज का ये दिन
ले रहा है अब दिवस विश्राम

लाल रंग से लोहित है नभ
लाल हुआ अस्ताचल की ताज
ढल रही है तपती गरमी
ढल रही है आज की शाम

लौट चले खग अपने नीड़ को
मस्जिद से हो रही है अजान
मन्दिर में गूँज रही है आरती
काला हो चला नीला आसमान

कितना मनोरम है यह बेला
कितना सुन्दर लगता जग धाम
ठंड़ी नीर ले लौट रही है
तरूणी सरिता से ले जल – जाम

टिमटिमाने लगे सब तारे
मुस्कुराने लगी है चाँद
बेताब है दीपक जलने को
ढल चुकी है आज की शाम

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088