कब तक हम अन्याय सहेंगे,
करो व्यवस्था वीर जवान ।
हाहाकार करे,बैरी दल
थरथर काँपे उनके प्रान ।।
वीर शिवा बन टूट पड़ो तुम
रहे मुकम्मल स्वाभिमान
आन बान औऱ शान भी तुम
तुम ही भारत माँ का मान
रणचंडी अब तो सरहद पर
करती वीरों का आह्वान
आज खून से तिलक करो तुम
करें गोलियाँ भी यशगान ।
धाँय धाँय से गूँजे अम्बर
मिटे बुराई नामनिशान ।
फिर खेलो खूनी सी होली
बासन्ती चोला पहचान ।।
एक वीर सौ -सौ पर भारी
दुश्मन अब तक क्यों अनजान ।
वीर भयंकर रूप धरे जब
बच पाये न इनकी जान।।
भारत माँ के लाल समर में
माँ ने ममता की कुर्बान ।
काल घूम रहा शत्रु के सर
शीघ्र करा दो उसको भान ।
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)