कविता

टिमटिमाते तारे

सूरज चला अस्ताचल की ओर
आसमां पे छाया लाली की डोर
चुपके से रजनी धरातल पे आई
चारो ओर अंधियारी है   छाई

चिड़ियाँ चहक रही है गगन पे
लौट रहे हैं नीज नीड़ मगन में
घोंसले में बच्चे कर रहे इन्तजार
आसमान पे छा गई    अन्धकार

नभ पे टिमटिमाते  अनगिनत तारे
दूर गगन से मुस्कुराते सब सितारे
गॉव जवार में चल रही है पुरवाई
चारों दिशा में ओढ़ चादर अंधियारी

बच्चे सब दुबक गये हैं घर में
ठंड से छुप गये रजाई के तर में
दादी परियों की कहानी सुनाती
रात में जब अंधियारा छा   जाती

अवारा कुत्ता सड़क पर रोता
ठंडक में कहाँ वो सड़क में सोता
दौड़ रही है बदरी  की परछाईं
रात हो चली गहरी अंधियारी

भोर हुई रजनी उठ गई और भागा
जो ना उठ पाया है वो जन अभागा
सूरज पूरब में दी है जब दस्तक
दिन आया ले नई दिन की किस्मत

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088