तेरी भी है और मेरी भी
ये प्रेम की कहानी तेरी भी है और मेरी भी ।
वो प्यार की निशानी तेरी भी है और मेरी भी ।।
रात में पलकों पे आकर जो ख़्वाब सोया है ,
वो ख़्वाब सलोनी तेरी भी है और मेरी भी ।
रूह से रूह का मिलन हुआ जिन तन्हाई में ,
वो शाम-ए-सुहानी तेरी भी है और मेरी भी ।
धरती पर ना पैर पड़े हम आसमाँ छू लें ,
जोश-ए-जवानी तेरी भी है और मेरी भी।
चहरे पे झलके या नैनों से छलके जो ग़म,
नशे- अश्क़ पानी तेरा भी है और मेरा भी ।
कभी किताबों के पन्ने पलट कर देखो तुम,
ग़म-ए-जिंदगानी तेरी भी है और मेरी भी ।
एक ही चाँद को देखते हैं बारी बारी हम ,
वो रातें मस्तानी तेरी भी हैं और मेरी भी ।
रेतों पे लिखा नाम लहरों ने मिटा दिया ,
मौजों की रवानी तेरी भी है और मेरी भी।
इश्क़-ए-खुदाया रहगुज़र और रहबर ,
ऐसी दीवानगी तेरी भी है और मेरी भी ।
ये प्रेम की कहानी तेरी भी है और मेरी भी ।
वो प्यार की निशानी तेरी भी है और मेरी भी ।।
— मनोज शाह ‘मानस’