ग़ज़ल
प्रेम बरसा रहे हो मुझ पर सावन की तरह,
हक भी जताते हो तुम साजन की तरह|
तुम्हारी ही पनाहों में बीते मेरी शाम,
तड़पा रही है तेरी याद मुझे तपन की तरह|
पिघल ना जाऊं कहीं तेरी बाहों में हम दम,
सुलग रहे हैंअब जज्बात अगन की तरह|
तुम्हारे ही नाम से अब जानेंगे मुझे लोग,
लगता है सब कुछ सुखद सपन की तरह|
होगी मेरी जरूर पूरी मुरादों वाली रात,
झिलमिल तारों सा आंगन है गगन की तरह|.
जँचता नहीं मुझे अब तेरे सिवा कोई और
बस गए हो मेरे इन नैनों में अंजन की तरह|
“मीरा” की तो आदत है प्रेम में विष पीने की,
अमृत उसे बना देना तुम भी मोहन की तरह|
— सविता सिंह मीरा