ग़ज़ल
टूटे वृक्ष निशानी की बात कोई ना।
छांव बीच जवानी की बात कोई ना।
गहरे-गहरे पानी को लाँघ गए हैं,
छिछले-छिछले पानी की बात कोई ना।
अपने ही साथ रहे दुख-सुख व्यथा में,
रूठे हुए प्राणी की बात कोई ना।
अक्षरों के साथ सदा रहे हैं याराने,
नाकामी शैतानी की बात कोई ना।
घर की जिम्मेवारी आँख भी ना उठ पाई,
गोरे कंठ में गानी की बात कोई ना।
चल मन मेरे यहाँ क्या हम ने करना,
महफिल में दिल जानी की बात कोई ना।
तारे चाँद सूरज इक्ट्ठे हो नहीं सकते,
नभ की मेहर बानी की बात कोई ना।
बंद डिब्बों भीतर है पकवान तेजाबी,
मटकी और मथानी की बात कोई ना।
खुशबू, मयखाने, घूमे देश विदेश, (देश)
’बालम‘ बीच नादानी की बात कोई ना।
— बलविंदर ’बालम‘