कविता

जेवर

नारी तन पर जब होती है जेवर
बदल जाती है सुहागन की कलेवर
चाँदी हो या हो सोना की गहना
गहने की प्यार से नारी का सपना

मांग में जब टीका विराजे
ललाट पे टिकुली है साजे
नाक में नथुनियॉ है प्यारी
शोभती है जग की सब नारी

कान में झुमका ठुमका लगाये
कंगन बाली कलाई  सजाये
अंगुठी अंगुली की है महरानी
गहने की अद्भूभूत है कहानी

पाँव पायलिया छम छम बाजे
सरगम की संगीत पे है नाचे
कमर पे करघनी है अति भारी
गहने में सुन्दर लगे सब नारी

बाजूबंद बांहों में शोर मचाये
रात पिया को नींद से जगाये
बिछिया पोर में अति सुहानी
मन को मोहे गहने की जवानी

— उदय किशाेर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088