सामाजिक

गीतों में घुली है लोकजीवन एवं माटी की सोंधी महक

गीत जीवन्त समाज के परिचायक होते हैं। समाज-जीवन एवं लोक व्यवहार में गीत रचे-बसे हैं। समाज में धार्मिक संस्कारों का गीत अनिवार्य हिस्सा होते है। गीत बेजान नहीं होते, उनमें समय का स्पन्दन होता है। गीत हृदय से हृदय के मिलन का सुरीला सायुज्य पथ है। गीत मलय बयार का शीतल झोंका है। राग की मधुरिम सुखद यात्रा है। गीत स्वयं में खो जाने की, समाधिस्थ हो जाने की भावभूमि है। सुर, लय, ताल, आरोह-अवरोह और गीत बोलने की गायक कलाकार की एक विशेष शैली एवं भाव भंगिमा हर व्यक्ति को अपनी ओर खींचती है। गीत सबको पसन्द होते हैं। गीतों के माध्यम से किसी विषयवस्तु को सरलता से न केवल अभिव्यक्त किया जा सकता है बल्कि कहीं अधिक बोधगम्य भी बनाया जा सकता है। गीत वातावरण की नीरसता, एकरसता, ऊब, जड़ता और भारीपन को दूर कर सरस, समरस, उमंगित, गतिशील और उत्साही परिवेश का निर्माण करते हैं। व्यक्ति के सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को गीत रोचक और ऊर्जावान बना देते हैं। गीत केवल शब्दों का कोरा समुच्चय भर नहीं है, बल्कि इनमें माटी की महक है, लोक की गमक है और सामाजिक प्रवाह का कलरव भी। ये समकालीन संस्कृति की धडकन हैं, समाज और राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। गीतों में खुशी, करुणा, स्नेह-प्रेम, आशा-विश्वास, ममता-समता, आत्मीयता, हर्ष, ललक, वात्सल्य, मिलन के मनोहारी चित्र अंकित हैं तो दुःख, दर्द, पीर, कसक, निष्ठुरता, निराशा, विषमता, अलगाव, आंसू, बिछोह भी प्रतिबिम्बत हैं। गीतों में अगर भौगोलिक सीमाएं, नदी, तालाब, पर्वत, घाटी, जंगल, कोहरा, जाडा, गर्मी, वर्षा, पवन, फूल और पशु-पक्षी प्राणवान हो उठते हैं तो इतिहास भी अपने पात्रों, पुरा प्रस्तर औजारों, मुहरों-मुद्राओं, सन्धि-पत्रा,ें युद्धों और हार-जीत के साथ प्रत्यक्ष होने को लालायित हो उठता है। इतना ही नहीं फाग, होरी, चैती, बिरहा, सावनी, कजरी के साथ-साथ कहरई, कुम्हरई, धोबी, बैलही, दिवारी, उमाह आदि विभिन्न जाति समूहों के अपने-अपने गीत हैं, जिनमें उनकी जिजीविषा, पहचान, अस्तित्व एवं अस्मिता, गौरव-बोध और साँस्कृतिक वैभव समाया है। गीत राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की भावना को भी पुष्ट करते हैं। शैक्षिक गतिविधियों में भी गीत सहायक सामग्री के रूप में अपनी सशक्त भूमिका निर्वहन करते हैं। किसी गोष्ठी, समारोह में मुख्य वक्ता के पूर्व विषवस्तु से जुड़़े गीत की प्रस्तुति एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण कर वक्ता की अभिव्यक्ति संप्रेषणीयता में वृद्धि कर श्रोता समूह के ध्यानाकर्षण करने में समर्थ होती है।
शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में गीतों का महत्व निर्विवाद स्वीकार्य है। यह देखने में आया है कि विद्यालयों का गम्भीर और अरुचिकर वातावरण बच्चों को न केवल शिथिल एवं थका देता है बल्कि उन्हंे निस्तेज भी करता है। प्रातः विद्यालय में प्रवेश करते हुए उत्साह-उल्लास से भरे पूरे हँसते-खिलखिलाते फूल-से सुकोमल चेहरे घर जाते समय मुरझाये और निर्जीव-से दिखाई पड़ते हैं। इन 6-7 घण्टों में बच्चे विद्यालय में आनन्दरहित परिवेश में जीने को विवश होते हैं। वे समय-सारिणी के अनुकूल व्यवहार करने को मजबूर होते हैं। घण्टी बजती है, घण्टे बदलते हैं, विषय बदलते हैं, शिक्षक बदलते हैं लेकिन नहीं बदलता तो वह बच्चों को मँुह चिढ़ाता डरावना बोझिल वातावरण और पारम्परिक शिक्षण का तरीका। परिणाम बच्चे निष्क्रिय रहते हैं और उनका सीखना बाधित होता है। बालमन के पारखी कुशल शिक्षक कक्षा शिक्षण के दौरान माहौल को रुचिपूर्ण एवं आनन्ददायी बनाने के लिए बीच-बीच में प्रेरक चेतना गीतों का प्रयोग करके न केवल बच्चों का मन जीत लेते हैं बल्कि प्रस्तुत विषयवस्तु को उनके लिए सहज ग्राह्य बना देते हैं। हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन तथा नन्हा मुन्ना राही हूं , देश का सिपाही हूं। बोलो मेरे संग जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद। ये गीत किस प्रकार बालमनों में आशा और विश्वास का संचार करते हैं, किसी से छिपा नहीं है। इसी प्रकार प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी सत्रों के बीच-बीच में प्रशिक्षक द्वारा समूह गीतों का प्रयोग करके प्रशिक्षण को जीवंत और सक्रिय बनाया जा सकता है। एक अच्छा प्रशिक्षक सम्बंधित विषय की भूमिका के रूप में उसी भाव एवं विचारों से ओतप्रोत गीत का सामूहिक गायन कर न केवल वातावरण तैयार कर लेता है बल्कि प्रतिभागियों का ध्यान आकृष्ट करते हुए अपना प्रभाव भी जमा लेता है। यदि हम बच्चों की पढाई, विद्यालय रखरखाव और अन्य क्रियाकलापों के सम्बन्ध में शिक्षकों, अभिभावको या विद्यालय प्रबन्ध समिति की बैठक आयोजित करें तो संवाद से पूर्व गीत का सामूहिक गायन वैचारिक वातावरण का निर्माण कर देता है, बच्चों की पढाई पे विचार होना चाहिए। जिसकी जिम्मेदारी उससे बात होनी चाहिए। या फिर, ले मशालें चल पड़े हैं अब लोग मेरे गाँव के। अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा- 2005 में विद्यालयीय परिवेश एवं कक्षा-कक्षों का वातावरण प्रजातांत्रिक, बाल मैत्रीपूर्ण तथा दण्ड एवं भयमुक्त बनाने पर बल दिया गया है। अपने शिक्षकीय जीवन में मेरा यह अनुभव रहा है कि खेलकूद, गीत-कहानी और बाल आधारित अन्यान्य शैक्षिक गतिविधियों/क्रियाकलापों के प्रयोग से विषयवस्तु की प्रस्तुति सरल हो जाती है जिसको बच्चे अर्थ समझते हुए ग्रहण करते हैं, स्वानुशासन के लिए प्रेरित होते हैं तथा कक्षा भी सक्रिय सजीव रहती है। बच्चों में आत्मविश्वास, मौलिक चिन्तन एवं कल्पना शक्ति का विकास होता है। शिक्षक भी प्रसन्न मन और उमंग से भरे रहते हैं। बच्चों के पढ़ना-लिखना सीख सकने में गीतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी गीत में पिरोये वर्णों और शब्दों से बच्चे खेलते हैं, जीते हैं और उनसे अपनेपन का एक रिश्ता जोड लेते हैं। अगर भाषायी कौशलों सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना के विकास की बात करें तो गीत सहायक सिद्ध होतें हैं। पढ़ना बल्कि यह कहें कि सीखने की पूरी प्रक्र्रिया बच्चों के लिए नीरस, थकाऊ और कष्टदायी न होकर रोचक, सरस और आनन्ददायी हो जाती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम बच्चों के मन, उसकी इच्छा-आकांक्षा, सपनों, भावनाओं को समझें। हम यह जानने की कोशिश करें कि वह क्या चाहता है। हम उसको उस तरीके से पढ़ायें जिस तरीके से वह पढना चाहता है, न कि जिस तरीके से हम पढ़ाना चाहते हैं। गीतों का प्रयोग बच्चों को प्रेरित करता है।
वास्तव में गीत शीतल निर्झर की भांति चरैवेति चरैवेति का ललित लोक संदेश देते हुए व्यक्ति में सत्साहस, सामर्थ्य, सहनशीलता, सहकारिता, सामूहिकता एवं सर्वमांगल्य के दैवीय भाव जाग्रत करते हैं। गीतों के शब्दों में ऊर्जा को अक्षय स्रोत होता है और पंक्तियों मेें सम्मोहन। गीत कुंठित मन की प्रेरणा हैं, प्रदर्शन का पुरस्कार हैं और मन का परिमार्जन भी। आईए, जीवन में गीतों को सहयात्री बना लें, सांसों का साथी बना लें तो हर राह आसान हो जायेगी, जीवन उपवन सा सौरभमय सुवासित जायेगा।

— प्रमोद दीक्षित मलय 

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]