दुनियां की सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल डिजास्टर
भोपाल गैस त्रासदी के बारे में आज हम भूल चुके हैं क्या?१९६९ में आई कार्बाइड इंडिया लिमिटेड नामक अमेरिकन कंपनी ने शुरू किया था कीटनाशक का उत्पादन शुरू किया था भोपाल में।शेरनोबिल न्यूक्लियर डिजास्टर में रूस में भी हजारों लोग मारे गए थे।लेकिन भोपाल गैस काण्ड में २और ३ दिसंबर की रात , आधी रात को गैस लीक होना शुरू हुआ था। ज्यादातर लोग सो रहे थे कुछ जग भी रहे थे।हजारों लोग को स्वास लेने में तकलीफ होने लगी। कइयों को उल्टियां होनी शुरू हो गई लोग दर के मारे उधर उधर भागने लगे।३७८७ लोगों की मौत की बात जाहिर हुई थी किंतु वहां राहत कार्य में संलग्न लोगो के मुताबिक या अनऑफिशियल आंकड़ा ८ से १० हजार का हैं।इस दुर्घटना में ५५८१२५ लोग प्रभावित हुए थे।दिसंबर का महीना और ठंडी हवा के साथ ४० टन मिथाइल आइसोसाइनेड मिल चुकी थी।ये बहुत जहरली होने की वजह से स्वास लेने वाले ३००० हजार लोगों की जान चली गई थी।इस गैस के स्वास में जाते ही मृत्यु निश्चित हैं।
कैसे हुआ ये हादसा?ऑफिसीएल रिकॉर्ड के हिसाब से एमआईसी गैस पानी के साथ मिक्स हो गई जिसे ठंडक के लिए रखा गया था।पानी के साथ मिक्स होने से गैस का वॉल्यूम बढ़ गया और उसके दबाव से टैंक का कवर जाने से गैस हवा में फेल गई।१९८४ में भोपाल की जन संख्या ८ लाख ५००० के आसपास थी जिनमें से आधे लोग खांस रहे थे और कुछ की आंखे जल रही थी,चमड़ी में जलन हो रही थी,इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी, न्यूमोनिया भी हो गया था।इधर उधर भी दौड़े और लोग अस्पतालों की ओर भी दौड़े किंतु उस वक्त सिर्फ दो ही बड़े अस्पताल थे जो भोपाल की आधी जनसंख्या को कैसे सेवा दे सकते थे।किसी की तो आंखे भी चली गई थी। आधी रात का समय होने से डॉक्टर्स भी कम संख्या में थे , उनको ये सब क्यों और कैसे हुआ था वह भी पता नहीं था। किस वजह से ये हुआ, मजरा क्या था ये कोई नहीं जान पा रहा था।जब पता लगा तब भी उनको कोई अनुभव नहीं था इंडस्ट्रियल डिजास्टर से आई मुसीबतों से निबटने का।वैसे ऐसे समय में अलार्म बजता है लेकिन ऐसा अलार्म बजा ही नहीं था।डर इतना था की लोग अपने सोए बच्चों को छोड़ के भाग रहे थे।दिशाहीन अवस्था में लोग डर से भाग रहें थे।भागते भागते थक के रुके हुए लोगों के हाल पूछने भी कोई रुक नहीं रहा था सिर्फ भागते चले गए।
अस्पतालों में रात में १.१० बजे आसपास पहला केस आया और उसके बाद कुछ देर में हजारों लोग आने शुरू हो गए और हजारों लोग मर भी गए ,अस्पताल के फ्लोर खून और उल्टियों से सना पड़ा था। जो मृत थे उनको कोई भी सर्टिफिकेट के बगैर ही रिश्तेदारों द्वारा अंत्येष्टि की जा रही थी।एक ही चिता में १५ –१५ लोगों को जलाए गए या कब्रिस्तान में एक ही कब्र में ११ – ११ शब दफनाएं गए और कितने लोग मर गए हकीकत में कितने लोगों ने जन गंवाई सही अंदाज उसका अंदाज ही नहीं था।
ज्यादा असर गांव वाले या
कारखाने के पास में रहने वाले लोग ज्यादा असरग्रस्त थे।जो हो रहा था उसका कारण किसी को पता नहीं था ये इलाज कैसे हो, ये भी प्रश्न था।करीब ५०००० लोगों को पहले दो दिन में सरवार की गई थी वह सोचो क्या हाल हुआ होगा जिनके नाक से खून बह रहा हो या पीला सा द्रव्य बह रहा हो उनका हाल क्या हुआ होगा? जब ५ बजे पुलिस वान आई और सब को घर लौटने की सूचनाएं दे रही थी किंतु किसी की हिम्मत नहीं थी घर जाने की।डर और खौफ का माहोल था ,१२ दिनों के लिए स्कूल बंद कर दिया गया था पूरा भोपाल दिनों तक बंद रहा था।जिंदगी एक स्टैंडस्टिल मोड पर आ गई थी।आज तक उसका असर देखने मिलता हैं।विकृत बच्चों का पैदा होना , गर्भवती स्त्रीयों के गर्भपात हो जाना और अभी तक कई मामलों में शरीक तकलीफें देखने मिलती हैं।बहुत बड़ी महामारी सा छा गया,हरी मक्खियों ने हमला कर दिया था,ये मक्खियां मृत शरीरों के सही निकाल नहीं होने पर आती हैं जो उस वक्त मानव और जानवरों के मृत शरीरों के पूरी तरह से क्रीमेशन नहीं होने से आ गई थी। उस वक्त सफाई कर्मचारियों की भी कमी थी जो ये काम कर सके।जो जानवर इस त्रासदी में मारे गए थे उनके मृत शरीर ऐसे ही पड़े पड़े सड़ रहे थे।
सभी डॉक्टरों को वहां के हालात के बारे में जानकारी देने के लिए मना कर दिया था जिसकी वजह से कईं जानकारियां बाहर ही नहीं आईं। कोई भी पत्रकार को उसके बारे में विस्तृत माहिती देने से भी रोका जा रहा था।सभी असरग्रस्तों का इस दौरान भूखों मरने की बारी आ गई थी।जो मातबर लोग तो शहर छोड़ के स्थानांतरण कर चुके थे।जो आर्थिक रूप से असमर्थ लोग ही रह गए थे।जो सहायता और राहत के लिए तरस रहे थे।दी गई धन राशि के बारे में तो पूछो ही मत,२०० रुपए की धन राशि क्रॉस चेक के द्वारा दी जाती थी ,जिसके लिए पहले बैंक में खाता खुलवाने के लिए २० रुपए देने पड़ते थे और खाता खोलने के बाद चेक जमा करवाने के बाद पैसे मिल रहे थे को उस वक्त एक लंबी प्रक्रिया थीऔर बैंक्स को भी इसमें दिक्कत हो रही थी। बैंक में जो भिड़ भी बहुतथी जिसे कंट्रोल करना भी मुश्किल हो रहा था।बाद में २० रूपिये ले खाता खुलवाना बंद कर वैसे ही खता खुलवा देना शुरू हुआ।जो तकलीफें लोगों ने सही वह बयान करना मुश्किल हैं।अगर पैसे मिल भी गए तो राशन का मिलना,और राशन मिला तो उसे पकाने का भी प्रश्न था,सभी तो बीमार थे तो पकाएगा कौन? दी गई सहायता के तहत मृत व्यक्ति के करीबी को १०००० रुपए की राशि दी गई, गंभीर रूप से बीमारों को २०००० रुपए और १०० से १००० तक सामान्य रूप से घायलों को दिए जा रहे थे।३७००००० लाख रुपए की सहाय कर के चार दिनों के बाद सहाय बंद कर दी गई, यह कह कर कि अब वितरण के लिए घर घर जा मुआयना करने के बाद दिया जायेगा।कार्बाइड पर केस चला और १९८९ में कार्बाइड ने ७५० करोड़ रुपए देने पड़े जो रिजर्व बैंक में जमा किया।सुप्रीम कोर्ट ने गाइड लाइन दी उन्हे वितरित करने के लिए,जिसमे मृत व्यक्ति के निकट के स्वजन को १०००० लाख से ५०००० दिए, ज्यादा प्रभावित लोगों को ५०००० से २०००००, कम प्रभावित लोगों को २५००० से १००००० तक देना तय किया लेकिन जुल्म ये हुआ कि उसमे से पहले दी गई राहत के पैसे काट कर दिया गया था।
बाद में ३ दिसंबर को कारखाना तो बंद करवा दिए गया और बाद सेना भी बुलाई गई जिसने थोड़ी व्यवस्था लाने की कोशिशें की।
ये जो कुछ हुआ वह यकायक नहीं हुआ था।कुछ समय पहले एक कर्मचारी को गैस लीक होने की वजह से अस्पताल में दाखिल किया गया था।और उस वक्त एक खोजी पत्रकार ने लेख लिख कर बताया था कि भोपाल ज्वालामुखी पर बैठा हैं लेकिन बहरी राजव्यवस्था ने अनदेखी की,अगर ध्यान में लिया जाता तो ये नर संहार करने वाली घटना से हजारों लोगों की जान बच जाती और उसके बाद जो स्वास्थ्य हानि हुई हैं उससे भी बचा जा सकता था। नागरिक राहत और पुनर्वास समिति ने चक्का जाम किया और
भोपाल गैसकांड के विरुद्ध जहरीली गैस काण्ड संघर्ष मोर्चे ने ३ जनवरी के दिन मुख्य मंत्री के घर के सामने धिक्कार दिवस मनाया और धरना प्रदर्शन किए और सहाय देने की गुहार दी गई।
एक बात गौरे काबिल हैं की करोना की दूसरी लहर के दौरान जो फोटो दिखाएं जा रहे थे उस वक्त ये एक चीता में १५ १५ लोगों को दाह दिया गया था और एक कब्र में ११ ११ लोगों को दफनाया गया ये क्यों याद नहीं आया।
दूसरा प्रश्न है कि जब कार्बाइड का मालिक वारेन एंडरसन भारत आया,गिरफ्तार भी हुआ तो वह कैसे ६ घंटो में दिल्ली ले गया और छूट के स्वदेश वापस चला गया? राजकरण के सामने प्रजा कितनी पामर हैं ये वहीं दिखाता हैं।
— जयश्री बिरमी