वीरान हुआ ख्वाबों का चमन,मायूस ज़िंदगी का सफर।
उदासियों से दूर ले चल मुझे हो जहाँ फूलों का शहर।
नयन मूंद बैठे हैं मुझ से, कल तक थे जो मेरे अपने।
साथ छोड़ गये जो हम से, याद आ कर रुलाते सपने।
प्यार आंधियों का सुनामी, ढाह के गया हम पे कहर।
उदासियों से दूर ले चल मुझे हो जहाँ फूलों का शहर।
फूलों का शहर हसीन है, जहाँ प्यार के दो दिल मिलते।
महकती खुशबू के दामन में,मुहब्बत के फूल हैं खिलते।
दिल लुटा देते है अपनों पे, जिंदादिल होते हैं हमसफर।
उदासियों से दूर ले चल मुझे हो जहाँ फूलों का शहर।
बदन होता है जहाँ शबाब, निखरा सा शबनम की तरह।
नयनों से प्रेम मधु बन के, महक जाता सरगम की तरह।
भौंरों की गुंजन हो मधुर, फूलों से घिरा मेरा हो घर।
उदासियों से दूर ले चल मुझे हो जहाँ फूलों का शहर।
शिकबा नहीं कोई शिकायत, हैं करते भरोसा खुद पर।
खुश मजाज रहते दिल से, उजला है जिन का अंबर।
ऎसे जहां में ले चल हो न इंसान वहाँ कोई काफिर।
उदासियों से दूर ले चल मुझे हो जहाँ फूलों का शहर।
— शिव सन्याल