कविता

मां का आंचल

बड़ा सुकून देता है मुझे, मां का आंचल|
 जब भी मैं दुनिया की,
उलझनों से परेशान होती हूं,
संभाल लेता है मुझे, मां का आंचल|
 स्नेह, वात्सल्य, ममत्व से पोषित,
 वह मेरे जीवन में, नई ऊर्जा का संचार करता है|
 देखने में तो है वह, छोटा सा वसन,
 पर उसमें पूरा ब्रह्मांड समाया है|
 अद्भुत महिमा है इस आंचल की,
  जिसके  सामने ब्रह्मा,
 विष्णु और शंकर ने भी अपना,
 शीश झुकाया है|
 माता अनुसूया ने अपनी, ममता वात्सल्य से,
  त्रिदेवो को भी नचाया  है|
 इस सृष्टि का अस्तित्व ही,
 इस आंचल में समाया है|
इस आंचल में बिताए हैं मैंने, सुकून भरे पल|
 “रीत” का शीष इस आंचल पर,
 नतमस्तक हो आया है|
— रीता तिवारी “रीत”

रीता तिवारी "रीत"

शिक्षा : एमए समाजशास्त्र, बी एड ,सीटीईटी उत्तीर्ण संप्रति: अध्यापिका, स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री मऊ, उत्तर प्रदेश