मां का आंचल
बड़ा सुकून देता है मुझे, मां का आंचल|
जब भी मैं दुनिया की,
उलझनों से परेशान होती हूं,
संभाल लेता है मुझे, मां का आंचल|
स्नेह, वात्सल्य, ममत्व से पोषित,
वह मेरे जीवन में, नई ऊर्जा का संचार करता है|
देखने में तो है वह, छोटा सा वसन,
पर उसमें पूरा ब्रह्मांड समाया है|
अद्भुत महिमा है इस आंचल की,
जिसके सामने ब्रह्मा,
विष्णु और शंकर ने भी अपना,
शीश झुकाया है|
माता अनुसूया ने अपनी, ममता वात्सल्य से,
त्रिदेवो को भी नचाया है|
इस सृष्टि का अस्तित्व ही,
इस आंचल में समाया है|
इस आंचल में बिताए हैं मैंने, सुकून भरे पल|
“रीत” का शीष इस आंचल पर,
नतमस्तक हो आया है|
— रीता तिवारी “रीत”