कविता

सच का आईना टूट गया

सच्चाई की इस नगरी में
सच्चाई जग से रूठ गया
झूठे का अब बोलबाला  हे
सच का आईना टूट गया

ईमानदारी की इस बदरी से
बेईमानी की बारिस खूब हुआ
नभ पर मेघों का बुरा हाल हुआ
सच का आईना टूट गया

स्वार्थी की इस बस्ती    में
हकीकत से नाता टूट गया
अपना भी मुँह मोड़ बैठा
सच का आईना टूट गया

उदंडता की इस गुलशन में
मान मर्यादा का किस्मत फूट गया
बैमनस्यता का पौधा फल फूल रहा
सच का आईना टूट    गया

ईष्या द्वेष की मद मस्ती में
मानवता की फजीहत खूब हुआ
खुशियों की चमन में काँटे चुभे
सच का आईना टूट गया

अल्हड़ता की इस खेला में
सुघड़ता की सूरज डूब गया
अमर्यादा ने करवट बदली
सच का आईना टूट गया

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088