लघुकथा

नशा न करियो कोई

गुरमीत के पिता जी देहांत जब हुआ वह दसवीं पास कर चुका था । उसने जब भी अपने पिता सरदार दलजीत को देखा , वे हमेशा शराब में मस्त देखा । दलजीत की शुरुआत सुबह शराब से ही होती फिर पत्नी कर्मजीत से झगड़ा करना आम बात थी। गुरमीत इस माहौल में पल कर भी नशे इत्यादि से बिल्कुल दूर रहा । स्कूल में उसने प्रथम कक्षा से लेकर दसवीं कक्षा तक हमेशा प्रथम स्थान प्राप्त किया । कालेज में भी वह मेधावी छात्र था ।
आज काॅलेज में ” नशा विरोधी सेमीनार पर गुरमीत ने बहुत जबरदस्त अपने विचार प्रकट किए। अपने पिता के शराब से लीवर सम्बन्धी गंभीर बीमारी से पीड़ित होकर मौत की बात का भी उसने जिक्र कर दिया ।
सभी प्रोफेसर ,गुरमीत को बेहद प्यार करते । काॅलेज के द्वितीय वर्ष में काॅलेज के इसके साथियों ने गुरमीत को काॅलेज का प्रधान बनाने का प्रस्ताव रखा पर गुरमीत इस नेचर का नहीं था पर दिलप्रीत छात्रा के कारण कमलजीत ने गुरमीत से ईष्या शुरू कर दी तथा अपनी अमीरी के कारण काॅलेज के बहुत से छात्रों को अपने साथ मिला लिया और तथाकथित काॅलेज का प्रधान बन गया । शहर के राॅयल होटल में सभी को ग्रैंड पार्टी दी । गुरमीत व दिलप्रीत को भी निमंत्रण दिया । पार्टी में खूब नशा चला । चिट्टे, हुक्के की बरसात हो रही थी । वही गुरमीत जो कभी नशे से सख्त नफरत करता था अब नशे का दास बन गया । पिता शराब तो गुरमीत चिट्टे का आदी हुआ । चिट्टे ने गुरमीत की आधी जमीन भी बिकवा दी ।
एक और दिलप्रीत का गुरमीत से प्यार का टूटना तो दूसरी ओर कमलजीत की ईष्या ने उसे अब चिट्टे के इंजेक्शन की लत लगा दी और एक मनहूस दिन ऐसा भी आया जब वह काॅलेज न जाकर अपनी मोटर पर चला गया और वहाँ जाकर उसने रोजाना की तरह इंजेक्शन लगा लिया । बस इंजेक्शन से उसका काम तमाम हो गया । अपनी विधवा माँ को छोड़ गया रोता विलखता छोड़कर इस नश्वर संसार को अलविदा कह गया । दोस्तों को नशे से दूर रहने की सलाह देने वाला , नशे को कलंक कहने वाले होनहार गुरमीत को नशा ही निगल गया ।

— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333