कहानी

कहानी – मेरा प्यार भी तू है

जंगल में बैठे मस्ती करते गर्मी में रिमझिम का मजा तो वही ही ले सकते है जिसने कभी पेड़ो के नीचे बैठ सर्दी-गर्मियों का आनन्द लिया हो । नीलम ऊर्फ नीलू ने राघव को कहा ।
प्रत्युत्तर में राघव ने कहा,” नीलू, देखो पेड़ गर्मियों में छाया देते हैं और स्वयंमेव धूप सहन करते हैं और सर्दियों में हमें भी ठंडक प्रदान करते हैं और स्वयंमेव ठंडे भी रहते हैं । गर्मियों में बिन जल पेड़ों के पत्ते सूखते हैं , सर्दी में हरे-भरे तो पतझड़ में अस्तित्वहीन हो जाते हैं ।
ठीक ऐसे ही पुरूष-स्त्री का सम्बन्ध है । दोनों एक ही पहेलू के दो  सिक्के हैं । ऐसे पेड़-पत्तों का सम्बन्ध होता है । “
नीलू ने कहा ,” आप बातें बहुत ज्ञानवर्धक करते हैं । हम प्राइमरी कक्षा से जाॅब लगने तक एक साथ मिलकर पढ़ते -खेलते , खाते-पीते रहे । हम और हमारे माता-पिता भी परस्पर सौहार्दपूर्ण ढंग से रहते आ रहे हैं ।
ऐसी परिस्थिति में इन दोनों युवाओं का प्यार पनपना स्वाभाविक था । दोनों को जाॅब बेंगलूरू में ही लगी । दोनों का फ्लैट भी साथ-साथ था । यहाँ आकर भी वही उनकी आदतें रहीं । हाँ, कभी-कभार पुरूषजन्य आदतों के कारण नीलू को टच करने की कोशिश करता और साथ ही किस की मांग कर डालता पर नीलू साफ इन्कार कर देती ।
नीलू ने राघव से पूछा,” हर आदमी सेक्स के मामले में औरत से अधिक शिद्दत होता है । वह तुरन्त अपरिचित होते स्त्री से प्रेम करना चाहता है पर विवाहेत्तर से पूर्व शर्मसार आदत के कारण पुरूष से आगे नहीं बढ़ना चाह्ती। प्रेम के लिए तड़फन औरत में भी होती है । “
राघव ने कहा,” जब प्यार किया तो डरना ही क्या ?
नीलू- हाँ यह तो बात है ।
पर आप  कई बार ये क्यों कहते रहते हैं कि जब प्यार का पहला अक्षर ही आधा है शेष अधूरा तो प्यार आधा और अधूरा होता है ।
नीलू ने झट से उत्तर दिया,” राघव हमारा प्यार पूरा होगा । तेरे-मेरे बीच में बंधन ही ऐसा होगा कि सारी दुनियाँ देखती रहेगी।
 वे बेगूलेरू में पाँच दिन काम करते और वीकेंड पर खूब मस्ती करते । सौभाग्य से मार्कीट में इनका सांझा मित्र देव इन्हें मिल गया । बेहद खूबसूरत विचारों वाला व भक्तिभावमय । कोई हेर फेर नहीं था देव में।  तीनों मिलकर प्रसन्नचित्त हुए । काॅफी हाउस में स्नैक्स के साथ काॅफी पीकर बातचीत करके तीनों अपने गंतव्य तक पहुँच गए।
     देव इनका सांझा मित्र था । इसलिए राघव व नीलू , देव को पूरा मान-सम्मान देते । सांयकाल पार्क में बैठकर गपशप मारते। न जाने देव को क्या होने लगा कि वह मन ही मन नीलू के सौंदर्य पर मोहित हो गया । दिन प्रतिदिन बस नीलू ही नीलू रट लगाए रखता । अब उसका चेहरा भी उतरा उतरा सा रहने लगा । शेव करनी बंद कर दी । खिलौना मूवी में संजीव की तरह उसका चरित्र दिखने लगा पागल सा ।
नीलू का पीछा करता । हर वक्त उसे प्रपोज करता ।  एक दिन थकी हारी नीलू अपने फ्लैट में ऑफिस से थकी हारी अपने बैड पर आराम कर रही थी कि देव वहाँ अदेव बनकर वहाँ आ धमका । उसने नीलू को पकड़कर चूमना शुरू कर दिया। देव ने नीलू से दुराचार करना शुरू किया ही था कि एकाएक राघव वहाँ आ गया और देव को गले से पकड़ कर
उसे घिसटना शुरू कर दिया । ताबड़ ताड़ देव को जोर से तीन-चार थप्पड जड़ दिए । देव तूने अपनी औकात दिखा ही दी । बड़ा देवों के देव शिव का उपासक बनता था ।
     राघव ने देव की मिन्नतें स्वीकार कर लीं । एक बार उसको माफ कर दिया और आइन्दा से ऐसी घिनौनी हरकत न करने की नसीहत दी ।
     पर जहाँ विश्वामित्र ऋषि काम वासना से नहीं बच सके तो देव की तो बात ही क्या थी ?  2 अक्टूबर को नीलू का जन्म दिवस था ।  देव नीलू को जन्म दिवस की हार्दिक बधाई देने उपहार लेकर नीलू के फ्लैट पर पहुँचा । सांयकाल 5 बजे नीलू के जन्म दिवस की ग्रैंड पार्टी शुरू होने वाली थी । राघव भी अपने और साथियों सहित पार्टी में शामिल होने आ गया । नीलू ने देव का उपहार नहीं रखा और उसे पार्टी ब  बसे तुरन्त चले जाने को कहा ।
   नीलू को उपहार देने की असफल प्रयास करते अन्तत: देव को अपना सा मुंह लेकर जाना पड़ा । पर फिर भी फ्लैट से बाहर निकल कर देव दरवाजे के पास खड़ा हो गया । नीलू बाहर आई और देव से पूछा ,” अदेव ही रहे तुम । किसी की भावना को नहीं समझ पा रहे हो । वासना के गंदे कीड़े ।”
इस पर देव ने कहा तू मुझे जो जी चाहे कह लो पर एक अत्यावश्यक बात तो सुन लो ।
बोलो , अब क्या कहना है अब तुझे ।
नीलू, बात बेहद गंभीर है ।
क्या रह गई है बात अब कुछ कहने की ?
तो सुनो , तेरा राघव कुछेक दिनों का मेहमान है ।
क्या हुआ है मेरे राघव को ?
वह एक दो महीने से पुनर्वास केयर सेंटर में इलाज करवा रहा हे । डाॅ गीता डोगरा अनुसार वह कोरोनाग्रस्त भी हो गया है । उसका बचना मुश्किल है । अब तो मुझ से शादी कर लो । ऐश से रहेंगे ।
     थू थू , देव प्लीज जहाँ से दफा हो जाओ । मुझे तुम से घोर नफरत है । मेरी तेरी दोस्ती तो पहले ही खत्म हो चुकी है । आज के बाद मुझ से बोलने की कोशिश न करना । अपने दोस्त को दगा देने वाले धोखेबाज। दोस्त से धोखा किया तुमने । देव, आखिरी वर्निग है तुझे । अब मेरी अंतिम बात भी सुन लो ।
बेशक वह बीमार है । चाहे वह मौत के सन्निकट है । राघव मेरा था , मेरा है और मेरा रहेगा । हमारे बीच कोई नहीं आ सकता  ।  एक बात और , राघव को चिट्टा पिलाने की लत भी तुमने ही लगाई । इसीलिए उसकी आज यह हालत हुई ।
तुम दोस्त नहीं दुश्मन बनकर आए थे ।
     अब दोस्ती की आशा न रखना ।  जाओ अपना रास्ता नापो । तभी मोबाइल की घंटी बजी तो उधर से डाॅ गीता बोल रहीं थीं । उन्होंने कहा,” अब राघव का स्वास्थ्य पहले से काफी बेहतर है । ” बेशक एक साल से राघव ने सेंटर में कमरे के भीतर रहकर सूरज तक भी नहीं देखा । उसे कोरोना भी नहीं धा क्योंकि रिपोर्ट ही गलत थी । अब राघव सुपर हीरो बन कर सेंटर से बाहर आ रहा है । तीन महीने के भीतर मैं व राघव अमेरिका जा रहे हैं । तेरा काम है चिढ़ना । तुम जिंदगीभर यूँ ही चिढ़ते रहना पर किसी माँ के पुत्र को चिट्टा पिला कर मौत के मुंह में न धकेलना अन्यथा तेरे संक्षिप्त जीवन में भी यही कुछ होगा ।
देव भूल जाना हमें कि कभी हम तुम्हारे थे । मेरा प्यार तो राघव है ।
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333