कविता

गृह लक्ष्मी

बेटी कहूँ या पुत्रवधू मैं तुमको
आई हो मेरे तुम कूल  धाम
मायके से तोड़ सारे रिश्ते नाते
पाई हो एक नई मुकाम

बेटी कहूँ या पुत्रवधू मैं तुमको
गृह लक्ष्मी बन आई हो मेरे नाम
मोह माया त्याग की बनी मूरत
संभाल लेना मेरे घर की लगाम

बेटी कहुँ या पुत्रवधू मैं तुमको
देना मेरे कूल को नया नाम
वंश बेल से गई वारिस देकर
कर देना मेरे कूल का कल्याण

बेटी कहूँ या मैं तुमको
सदा सुहागन रहे तेरे नाम
मान मर्यादा से हर दिन सींचकर
पूरा करना सबका तूँ अरमान

बेटी कहूँ या पुत्रवधू मैं तुमको
दिन रात बाँटना खुशियों का पैगाम
नये घर के सब रिश्ते हैं तुम्हारे
सब को देना नित्य मान सम्मान

बेटी कहूँ या पुत्रवधू मैं तुमको
दोनों है बस एक ही समान
कूल की इज्जत है तेरे हाथों में
कूल को ना करना बदनाम

— उदय किशाेर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088