यात्रा वृत्तान्त

मेरी  जापान  यात्रा – 1

            कुछ दिन पहले जापान जाने का अवसर मिला।  हम दोनों जापान से लगभग अनभिज्ञ ही थे , अतः एक जापानी -अंग्रेजी -जापानी शब्दकोष खरीद लिया।  यूं भौगोलिक जानकारी हमें जापान के विदेशलय से मिली ही थी।  जापान में घूमने के लिए हमने वहां की प्रसिद्ध बुलेट ट्रेन के टिकट लंदन से ही खरीद लिए कारण कि उसका विशिष्ट सस्ता दाम केवल पर्यटकों के लिए है।
            वेश भूषा आदि के लिए कोई विशेष सावधानी की जरूरत नहीं पडी क्योंकि आम जापानी का परिधान पाश्चात्य संस्कृति से नब्बे प्रतिशत प्रभावित है।  दस प्रतिशत जापानी लिबास उन्होंने विवाह ,जन्म ,मृत्यु आदि विशेष अवसरों के लिए बचा रखा है।
            हवाई जहाज में मेरी सीट खिड़की के पास थी।  मेरी बगल में मेरे पति और उनके बादवाली सीट पर एक विद्यार्थी सा दिखनेवाला व्यक्ति बैठा था। उसने पूछा कि क्या यह हमारा पहला अवसर है जापान जाने का।  इस तरह बातचीत शुरू हुई।  वह अंग्रेज था।  मेरे पति ने बताया की उनका बचपन में जापान से दूर दराज़ का सम्बन्ध था।  उनके पिताजी व्यापारी थे और जापान से बहुत सा सामान खरीदकर लाहौर भेजा करते थे अतः उनका आना जाना लगा रहता था।  वहीँ के सुन्दर खिलौने कपडे आदि पहनकर मेरे पति बड़े हुए थे।  परन्तु दुर्भाग्यवश जब १९३९ में द्वितीय महायुद्ध शुरू हुआ तब उनके पिताजी वहां से निकल न सके और अगले छह वर्ष तक उनका कोई पता नहीं चला परिवार को।  जिस दिन हिरोशिमा पर बम गिराया गया उस दिन वह उसी शहर में थे मगर सुबह ही किसी ने बताया कि वहां का बंदरगाह बंद कर दिया गया है। अतः कोबे चले जाओ शायद वहां से कोई नाव मिल जाए।  शायद सुबह छह सात बजे वह एक रेलगाड़ी से ओसाका की तरफ चले गए।  उसी दिन बम फटा मगर उनकी किस्मत में वापस स्वदेश आना लिखा था।
            मेरे पति को हमेशा साध रहती थी जापान देखने की।  यह बात और है कि तब के जापान में और अब के जापान में ज़मीन आसमान का अंतर था।  विश्व युद्ध के बाद जापान की एक टूटी फूटी तस्वीर जॉय मुकर्जी की फिल्म ” लव इन टोकियो ”  में दर्शाई गयी थी जो मुझे याद थी।   अणुबम के शिकार हुए अनेकों बच्चों बूढ़ों की दिल दहला देनेवाली तस्वीरें मेरे स्मृति पटल पर किसी डरावनी नगरी की सैर की तरह अंकित थीं।  मुझे लग रहा था कि जापान जा तो रही हूँ मगर हिरोशिमा नहीं जाऊंगी।  उस वस्तुस्थिति को झेल नहीं पाऊंगी।  फिल्म अपने रंगीन गाने  और सुन्दर दृश्यों के बावजूद बुरी तरह पिट गयी थी।  उसकी वजह यही थी कि भारतीय जनता यथार्थ की विभीषिका से पलायन करने के लिए ही फिल्म देखती है।  मैं यह भी भूल गयी कि  उस समय से अब तक पचास- पचपन  वर्ष गुजर चुके थे और ऐसे घायल कतई ज़िंदा नहीं हो सकते।
           हमारी अनभिग्यता हास्यास्पद रही होगी।  साथ बैठे उस तीसरे व्यक्ति ने जब हमें अपनी जापानी भाषा मांजते सुना तो वह हंस पड़ा।  फिर उसने बतलाया कि वह एक टूर गाइड है और जापान में अंग्रेजों को टूर सम्बन्धी मशविरा देने का काम करता है।  जो किताब हम पढ़ रहे थे उसका लेखक वह स्वयं था।  सफर के लिए हम अच्छे मुहूर्त में चले थे।  उसने हमें अच्छी तरह समझा कर एक कागज़ पर यात्रा योजना बना डाली।  कुछ विशेष दर्शनीय स्थल और रहने के लिए सस्ते और साफ़ होटल भी बता दिए।  खाने पीने के स्थान ,जो हमारे मतलब के हो सकते थे।  उसने हमें जापानी खानो से दूर रहने की ख़ास सलाह दी क्योंकि जापानी लोग शाकाहारी भोजन भी मछली के तेल में बनाते हैं।
          बढ़िया !
          पहला पड़ाव टोकियो था।
          उतरते ही जो बात सबसे पहले दिमाग में दमकी वह थी सफाई।  इतनी सफाई कि फर्श में अपनी छवि देख लो।
          दूसरी थी — तहज़ीब !! इतनी अधिक आचरण की सभ्यता व शिष्टता मुझ लखनऊ वाली को शीशा दिखा रही थी।  केवल नवाबों को ही  सलाम नहीं बल्कि सब झुककर ,बाकायदा कमर तक झुककर ,आपका अभिवादन करते थे।
क्रमशः ——–

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल [email protected]