आज से पचास या साठ वर्ष पहले उत्तर पूर्व के राज्यों में लोहड़ी के त्यौहार को कोई कोई जानता था। परन्तु अब पंजाब की ओर से अनेक रिवाज़ अन्य प्रांतों की जीवन शैली में घुल मिल गए हैं। इसका मुख्य कारण सिख समुदाय का परिवहन के क्षेत्र में योगदान है। भारत ही नहीं विश्व भर में सिख भाई टैक्सी और ट्रक चलाते हैं। यह मेहनत और धर्म के बाद किसी अन्य सिद्धांत को मानते हैं। जी तोड़ काम करने के बाद यह समुदाय छक कर मस्ती भी करता है। इनकी मस्ती इनके संगीत और नृत्य में दिखाई देती है जो अब भारत भर में सबसे अधिक लोकप्रिय है। यही नहीं विश्व में भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
यूं तो सभी पंजाबी लोग लोहड़ी का त्यौहार मनाते हैं मगर इसको पूरे भारत की लोक संस्कृति का अंग बनाने का श्रेय सड़क के शेरों अर्थात सरदारों को जाता है।
भारत अनादि काल से सूर्यपूजक देश रहा है। ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म के पहले विश्व के सभी धर्म सूर्य पूजक थे। इनमे रोम और मिस्त्र बड़ी शक्तियां थीं। फारस में अग्नि उनका प्रमुख देवता था जापान में भी प्राकृतिक शक्तियों को पूजा जाता था। मगर भारत में सूर्य मंडल न केवल पूजित था ,इसका गहन अध्ययन भी यहीं किया गया। ज्यामिति और ज्योतिष का महीन ज्ञान पांच से सात हज़ार वर्ष पहले भारत में विद्यमान था।
सूर्य की दिशा के संग उपज का जो सम्बन्ध है वह भारतीयों को ज्ञात था। अतः हमारे सभी प्रमुख त्यौहार उपज और फसल से निर्देशित हैं। २२ दिसंबर को पृथ्वी पर सूर्य का सबसे छोटा दिन होता है। इसके बाद सूर्य उत्तरायण की ओर अग्रसर होता है। जनवरी की १४ तारीख को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इसको मकर संक्रांति कहते हैं. राशियां १२ होती हैं। जब भी सूर्य एक राशि से दूसरी में प्रवेश करता है , एक नयी संक्रांति होती है। संक्रांतियां १२ होती हैं। हिन्दू धर्म के अनेक मतों में त्योहारों की गणना संक्रांतियों से होती है।
२२ दिसंबर से दिन की लम्बाई बढ़ने लगती है। उसके बाद पहली संक्रांति १४ जनवरी को आती है। यह हमारे वर्ष का विशेष दिन तय है। कुम्भ का स्नान इसी दिन होता है। नदियों के किनारे मेले लगते हैं। पूरे भारत में पूजा दान आदि शुभ कार्य किये जाते हैं।
‘ तिल ‘ संभवतः भारत में सबसे पहले उगाया गया था। तिल शब्द से बना है ‘ तेल ‘ .
‘ तेल ‘ विश्व को भारत ने दिया। यह समय रबी की फसल की कटाई का समय होता है। तिल की नई फसल काटी जाती है। कहावत है ,” पुराने तिलों में तेल नहीं होता ” . अतः खलिहान में जितना पुराना तिल बचा होता था उसे झटपट इस्तेमाल करके नई फसल के लिए जगह बनाई जाती थी। इसलिए मकर संक्रांति पर तिल का दान किया जाता है। पूरे भारत में तिल के व्यंजन बनाये जाते हैं। जैसे तिलकुट ( महाराष्ट्र ) , तिलबुग्गा ( पंजाब ) , गजक ( उत्तर भारत ) , लड्डू ( गुजरात ) आदि आदि। रेवड़ी संभवतः विश्व की पहली चूसने वाली मिठाई है।
पंजाब प्रान्त में सर्दी औसत से अधिक पड़ती है। अतः संक्रांति की पूर्व संध्या को कसबे का प्रमुख ,या ज़मींदार ,या सेठ ,अपने गाँव खेत आदि में अपनी प्रजा ,यानि किसानो को एकत्र करके एक अग्नि यज्ञ का आयोजन करता है। दो या तीन हफ्ते पहले से छोटे बच्चे टोलियां बनाकर घर घर लोहड़ी माँगने जाते हैं। यह लोग छंद ( टप्पे ) और गीत गाते हैं जो कभी कभी स्वरचित भी होते हैं। लोहड़ी के लिए गृहस्थ इनको लकड़ी और मिठाई गुड़ ,चूरी ( रोटी को कूट कर घी और शक्कर मिला कर बनाई मिठाई ),पैसे आदि देते हैं। बच्चे इनको आपस में बांटकर खाते हैं। मना करने पर कहते हैं
हुक्का भई हुक्का
ऐ घर भुक्खा।
लोहड़ी का सबसे पुराना गीत है :–
सुन्दर मुंदरिये , हो
तेरा कौन विचारा , हो
दुल्ला भट्टीवाला , हो
दुल्ले धी वियाही , हो
सेर शक्कर पाई , हो
कुड़ी दा लाल पटाका ,हो
कुड़ी दा सालू फाटा ,हो
सालू कौन समेटे , हो
चाचा गाली देस्से ,हो
चाचा चूरी कुट्टी ,हो
ज़मींदारां लुट्टी ,हो
ज़मीन्दार सुधाये ,हो
बेम बेम भोले आये ,हो
इक्क भोला रै गया ,
सिपाई फड़ के लै गया.
सिपाई ने मारी इंट
पाँवे रो ते पाँवे पिट्ट
सान्नु दे दे लोहड़ी
ते जीवे तेरी जोड़ी।
नई लकड़ी फूस आदि एकत्र करके उसकी पूजा की जाती है। सुहागिने इस अलाव का नारियल, नए बांस , चुन्नी आदि से सिंगार करती हैं। बीच में गोबर की सांझी बनाकर रखी जाती है।सांझी संध्या देवी का स्वरूप है जिसकी सुहागिने पूजा करती हैं। सभी गृहस्थ अपनी अपनी थाली सजा कर पूजा करते हैं। थाली में पत्तों वाली मूली , गन्ने की गँडेरियाँ , तिल , मूंगफली , पकवान
रेवड़ी ,खजूर , चिड़वा ,मकई के फुल्ले , बताशे या अन्य मिठाई आदि होती है। दिन ढल जाने पर मुखिया अलाव जलाता है। एकत्रित महिलाएं व पुरुष गीत ,दोहे ,बोलियां गाते हैं और भंगड़ा डालते हैं। नव दम्पति और नवजात शिशु की पहली लोहड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।
फसल की समृद्धि से जुड़ा यह त्यौहार केवल भगवान् की कृपा का कीर्तन नहीं है। इसमें बसी है एक वीर की याद जिसने मुग़ल सम्राट को आँख दिखाई थी और इंसानियत की अनहोनी मिसाल कायम की थी। आज तक पूरा पंजाब उसे याद करता है। उपरोक्त कविता पर ध्यान दीजिये। दुल्ला भट्टीवाला का जिक्र आता है।
कौन था यह दुल्ला भट्टीवाला। क्यों सारा पंजाब उसके गुन गाता है आजतक ?
आज इस युग में यह कहानी विशेष महत्त्व रखती है। कहते हैं इतिहास अपने को दुहराता है। आज भारत में जिन हालातों पर हम आंसू बहा रहे हैं वैसे ही हालातों ने आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व इस महान वीर को जन्म दिया था। लोहड़ी उसी की याद में मनाया जानेवाला एक ऐतिहासिक त्यौहार है । मगर इसमें यू के के ” गाए फॉक्स ” या रावण जैसे नाकारों को नहीं बल्कि एक वीर ,सदाचारी, धरतीपुत्र भारतीय को याद किया जाता है।
इस वीर का नाम अब्दुल्ला भट्टी था। भट्टी उसकी ज़मींदारी का नाम था। यह एक ज़मींदार परिवार में सोलहवीं शताब्दी के मध्य में पैदा हुआ था। इसके पिता का नाम फरीद और माँ का नाम लाड़ी था। इसके दादा का नाम बिजली संदल था। यह लोग रावलपिंडी के पास रहते थे। आस पास के गाँवों में इनकी धाक थी। अकबर बादशाह ने इस काल में पंजाब में अपने पाँव गड़ा दिए और बारह वर्ष के लिए लाहौर को अपनी राजधानी बना लिया। उसने इस काल में अफगानिस्तान और पेशावर पर चढ़ाई की। अपनी साम्राज्य्वादी नीति के चलते उसको धन की बहुत जरूरत पडी। उसने एक मोटा राजस्व किसानो पर लाद दिया और उसके कारिंदे जबरदस्ती किसानो को लूटने लगे। दरअसल मुग़ल सम्राट सेना के सिपाहियों को राजकोष से तन्खा नहीं देता था। उनको बस अधिकार दे देता था कि जिसे चाहे लूट लो। वह अपनी हद से अधिक मनमानियां करते थे। किसानो की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ा।
बिजली संदल और फरीद ने इसका जम कर विरोध किया। वह अपनी खुद की फ़ौज रखते थे और उनको मुग़ल सेना से लोहा लेने भेज देते थे। कई बार मुग़ल सेना हार गयी। मगर एक मौलवी की गद्दारी के कारण मुग़ल सेनापति ने उनको ज़हरीला पेय पिलाकर नशे की हालत में बंदी बना लिया और लाहौर लाकर किले के सामने सूली पर लटकवा दिया। उनके शरीरों को दफनाया नहीं गयाबल्कि भूसा भरवा कर किले की दीवार पर टांग दिया गया। ताकि बागियों में दहशत बनी रहे।
इनके मरने के चार महीने बाद लाड़ी ने अब्दुल्ला को जन्म दिया। सुनकर अकबर के कान खड़े हुए। उसने युक्ति से लाड़ी को अपने वश में किया। उसी दिन अकबर के बेटे शेखू ( बाद में जहांगीर ) का भी जन्म हुआ था। अकबर ने कहा कि शेखू को किसी राजपूतनी का दूध पिलाया जाए ताकि बच्चा वीर बलवान बने। अतः उसने लाड़ी को बुला भेजा। सद्यः प्रसूता लाड़ी अपने पति और ससुर को गवां बैठी थी। नवजात शिशु की रक्षा भी उसे करनी थी अतः वह , मरता कया न करता , राजी हो गयी। उसने दोनों बच्चों को दूध पिलाया। दोनों बच्चे अभिन्न मित्र थे। अब्दुल्ला शैतान और खिलंदड़ा था। सिपाही अगर किसानों को तंग करते थे तो वह गुलेल से मारकर उनको सज़ा देता था। कई बार उसे अकबर के सामने पकड़ ले जाया गया मगर शेखू हर बार उसको बचा लेता। अकबर ने उसको मदरसे पढ़ने भेजा मगर उसका ध्यान शरारतों में लगा रहा। .अक्सर गुलेल से वह चिड़ियाँ मारता। ज़रा बड़े होने पर उसने गुजरियों की मटकी फोड़ने में महारत हासिल की। कहते हैं एक दिन एक स्त्री ने उसे फटकार बताई और कहा नालायक तू अपने बाप और दादा के नाम को डूबा रहा है। वह दूर दूर तक अपनी शराफत और न्यायप्रियता के लिए मशहूर थे। उनकी लाशें किले पर तंगी तेरा इंतज़ार कर रही हैं। अब्दुल्ला ने अपनी माँ से पूछा। तब लाड़ी ने पहली बार उसे बताया कि वह कौन था और उसके पिता और दादा का क्या
उद्देश्य था जीवन में। लाड़ी ने उसको सात कमरे दिखाए जिनमे हथियार बंद थे।
बस तभी से अब्दुल्ला बागी बन गया। वह अमीरों को लूटकर किसानो की मदद करने लगा। । उसने ५०० वीर नौजवान एकत्र किये और उनको शस्त्रविद्या सिखाई। अकबर के एक सौदागर अली को मारकर उसने ५०० घोड़े अपने कब्जे में कर लिए जो वह कंधार से लाया था। अकबर की एक बीबी मक्का मदीना जा रही थी हज करने। अब्दुल्ला ने उसको लूटकर सारा धन किसानो में बाँट दिया। वह लोहारों और बढ़इयों को अधिक पूजता था। यह लोग उसे हथियार बना कर देते थे। इसी तरह मेधा खत्री एक सौदागर था। वह बुखारा से माल लेकर आया था। अब्दुल्ला ने उसे लूटकर अनेक लड़कियों की शादी करवाई। लड़कियों की तस्करी रोकने के लिए बाह जान हथेली पर रखकर घूमता था। अनेकों को उसने छुड़वाया और फिर उनकी शादिया करवाईं अकबर हार गया मगर उसे पकड़ नहीं पाया। कहते हैं अब्दुल्ला लाहौर गया तो तुलसी राम नामक एक हिन्दू ने शिकायत की कि कई कसाई गाय काटते थे। उसको बहुत बुरा लगा। उसने उनको मौत के घाट उतार दिया। उसने एक रात में २४ कसाई मार डाले। अभी भी अनेक राजपूत और आराई मुसलमान गाय नहीं खाते।
एक बार एक हिन्दू किसान की दो बेहद सुन्दर लड़कियों की सगाई हुई। उनके नाम थे सुंदरी और मुंदरी। सगाई तो हो गयी मगर उनके ससुराल वाले गौना कराने नहीं आये। उनको अकबर के कारिंदों का डर था। यह लोग सुन्दर स्त्रियों को जबरदस्ती अगवा करके अकबर बादशाह को खुश करते थे। या उनको काबुल और कंधार के सौदागरों के हाथ बेच देते थे। लड़कियों के पिता ने अब्दुल्ला को पुकारा। अब्दुल्ला ने इस कारज का खुद बीड़ा उठाया। उसने घने जंगल में एक बड़ा अलाव जलाया और पंडित को बुलवाकर सुंदरी और मुंदरी के फेरे डलवाये। उसने खुद कन्यादान किया और दहेज़ में एक एक सेर शक्कर दी।
लोहड़ी के गीत के बोल इस घटना के साक्षी हैं।
कुड़ी डा लाल पटाका , ( दुल्हन का लाल जोड़ा था )
कुड़ी डा सालू फाटा , ( उसकी चुन्नी फटी हुई थी )
सालू कौन समेटे , ( चुन्नी की लाज कौन रखे )
मामा गाली दस्से ,( मामा दुष्टों को कोस रहा था )
भर भर चूरियाँ वंडे ( जब दुल्ले ने शादी करवा दी तो मामा ने चूरी बाँटी )
तभी गांववाले आ गये और उन सबने उत्सव में भाग लिया। चारों तरफ ख़ुशी छा गयी। लोहड़ी का त्यौहार इसी वीर बहादुर स्त्रियों के संरक्षक ,अब्दुल्ला की वीरगाथा है। हमें इससे सीख लेनी चाहिये और इस गाथा का प्रचार करना चाहिए। खासकर आज के युवकों को जो स्त्रियों को बेइज़्ज़त करके अपनी वीरता सिद्ध करना चाहते हैं।
अनेक ऐतिहासिक घटनाएं इस वीर से जुडी हैं। जहांगीर इसपर मुग्ध था। कहते हैं अब्दुल्ला ने एक बार शिकार पर एक हमलावर शेर को मार गिराया और जहांगीर की जान बचा ली। खुश होकर जहांगीर ने उसे पच्चीस घोड़े इनाम में दिया। अब्दुल्ला मुसलमान था मगर अपनी प्रजा में सबको बराबर सम्मान देता था। उसने गुरु अर्जुन देव जी के साथ मिलकर बड़ी दोआब क्षेत्र में किसानो के कर माफ़ करवाए थे। मगर उसका हिन्दू प्रेम मौलवियों को नहीं सुहाता था। एक मौलवी ने उसे धोखे से पकड़वा दिया। अकबर ने अब्दुल्ला को भी उसके बाप और दादा की तरह सूली पर लटकवा दिया। मगर मरते मरते भी उसके मुख से निकला ” पंजाब का कोई भी इज़्ज़तदार किसान अपनी ज़मीन की मिटटी नहीं बेचेगा। ”