कविता

छोटा-सा टुकड़ा

लालिमा का छोटा-सा टुकड़ा
लाली मां से दूर था पड़ा
मानो मां से रूठ गया हो
सोच रहा था खड़ा-खड़ा
मां से आइसक्रीम मांगूं या न मांगूं!
मां के पास पैसे नहीं होंगे तो उन्हें कैसा लगेगा!

लालिमा का छोटा-सा टुकड़ा
लालिमा से दूर था पड़ा
मानो क्रिकेट का 12वां प्लेयर हो
सोच रहा था खड़ा-खड़ा
वह खेलना भी चाहता है
पर किसी खिलाड़ी का चोटिल होना भी
उसे गवारा नहीं है
चोटिल होने के कारण
उसे मैच छोड़ना पड़े तो उसे कैसा लगेगा!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244