हमीद के दोहे
जीवन है मुश्किल भरा,हर पग है पुरख़ार।
दिल दीवाना ये नहीं, माने फिर भी हार।
संसद से मैदान तक, हर नेता ग़मख्वार।
फिर भी जीना हो रहा, मुफलिस का दुश्वार।
दिल में मेरे है बसी , सुन्दर सी तस्वीर ।
जिससे मिलती है मुझे, सुबह शाम तन्वीर।
पूँजीपति ही आजकल, दिखते हैं खुशहाल।
मँहगाई की मार से , जनता है बेहाल।
हिन्दी उर्दू का नहीं, ज़रा कहीं टकराव।
पढ़िए लिखिए प्यार से,दिल में रख समभाव।
— हमीद कानपुरी,