ये रात मुझे डराती है
ये रात मुझे डराती है
कुछ बात मुझे समझाती है।
इन मुर्दों के शहर में
जिंदगी दम तोड़ती नजर आती है।
कुछ तो बदल गया हमारी नज़रों में
जो हमारी नजरिए में झलक जाती है।
अलगाव के इस दौर में
अपने वजूद का एक हिस्सा खुश्क हो जाती है।
चाहे इंसानियत का कितना भी राग अलाप ले
मगर इंसान के ही हाथो इंसानियत दम तोड़ जाती है।
— विभा कुमारी “नीरजा”