मुक्तक/दोहा

मुक्तक

ओमीक्रोन वायरस है लहराया,

करोना नव रूप धर फिर है छाया  ।

खो अपने ग़र तू अब जो न संभला,

माटी-मोल फिर क्या जान है पाया ।।

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क्या लाया था क्या ले जा है पाया,

अंतर-नैन खोल क्यों है भरमाया ?

ज़रा तो हो जा पावन और निर्मल,

अपने कर्मों में हर फल है समाया ।।

— भावना अरोड़ा ‘मिलन’

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।