बड़ी भदलय
लगभग चार सौ बर्ष पहले बुढ़ी गंडक नदी के गोद में बसे छोटे से गांव में एक मां भगवती का एक उपासक था कोहा_भगत। कहावत है मां भगवती से प्रतिदिन बात करता था । आस-पास के लोगों की बड़ी श्रद्धा थी। कोहा भगत राजपुत जाति से थे पुजा पाठ के कारण वह भगत बन गये। भगत जी पर मां की दया बरसती रहती थी जिससे आसपास के गांवों के लोगों का हर तरह समस्या का समाधान इनके आशिष से होता था।
मां का आदेशानुसार उसे किसी के घर कुछ भी खाने का या लेने का मना ही था पर भगत जी पेटु थे खाने को मना रहने पर भी वह दूसरों के घर खाने लगे जिससे मां नाराज हो गई और एक दिन दूसरों के घर खाने के क्रम में उनका पेट फट गया और मृत्यु हो गई।
समय-चक्र में समय के साथ लोगों ने कोहा भगत और मां भगवती को भुलने लगा । जल की घारा कमजोर होने से गांव बसने लगा पर मां के स्थली का यदा-कदा ही लोगों का ध्यान जाता रहा। अचानक हैजा का प्रकोप असपास के गांव में फैलने लगा तो लोगों को कोहा भगत और मां का स्थली याद आया ,फिर से स्थली को मट्टी का घर बना कर मंदिर का रूप देकर पूजा-अर्चना होने लगा।.चमत्कार हुआ और गांव पूर्ण रूप से सुरक्षित रहा।लोगों का विश्वास आस्था के रूप में परिवर्तन हो गया।
दूसरी एक धटना है जब लोगों ने अपना घर पक्की बनाने लगे तो कई लोगों को संकटों का दौर हुआ बाद में मां का मंदिर भी बनवाया , उसके बाद से आज तक लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है और गांव हर बड़े संकट यहां तक की कोरोना महामारी भी इस गांव में प्रवेश नही कर पाया
बिहार में खगड़िया जिला का एक गांव जो बुढ़ी गंडक और गंगा नदी के मिलन स्थली के किनारे बसा है और मानशी जंक्सन रेलवे स्टेशन लगभग सोलह किलोमिटर और महेशखूंट रेलवे स्टेशन से चार किलोमिटर की दुरी पर बसी उस गांव का नाम है “बडी भदलय “
— शिवनन्दन सिंह