हो रही प्रिय मिलन आतुर ,
लिख रही हूँ प्रणय पाती ।
प्रीत – पथ अनुगामिनी मैं ,
प्रीत ही हूँ गुनगुनाती ।।
स्वर मुखर होने लगे हैं,
साधना देती निमंत्रण ।
सुधि -सुमन महके हुए हैं,
कर गयी पीड़ा पलायन ।।
गीत लिखती भावनाएं
धड़कनें संग स्वर मिलाती ।
प्रीत -पथ अनुगामिनी मैं,
प्रीत ही हूँ गुनगुनाती ।।
प्यास की पावन ऋचाएं
स्वाति के कुछ कण पियेंगी ।
तृप्तिक्षण ,अनुभूतियाँ फिर,
प्राण में भर कर जियेंगी ।।
आस ही दीपक बनी ,
अन्तर तमस को जगमगाती ।
प्रीत -पथ अनुगामिनी मैं
प्रीत ही हूँ गुनगुनाती ।।
उदित उम्मीदों का सूरज,
छँट गये कुहरे घनेरे ।
स्वर्णिम विहान बुला रहा ,
डालती खुशियाँ हैं डेरे ।।
मीत इन मधुरिम क्षणों में ,
सृष्टि ज्यों, लगती बराती ।
प्रीत -पथ अनुगामिनी मैं,
प्रीत ही हूँ गुनगुनाती ।।
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)