शब्द मोती
ये गजब पतझड़ का मौसम,
शब्द मोती झर रहे हैं
धवल चादर पर बिखर कर,
अनकहा कुछ गढ़ रहे हैं।
मोरपंखी सी थिरकती,
प्रीत आशा,मीत मन की
लापता अंजन महल में,
हृदय रंजन कर रहे हैं।
धुल गई रंगत हया की,
अक्षरों का साथ पाकर
अमित स्याही में नहाकर,
दर्द दिल के धुल रहे हैं।
बीते सोलह बारहमासे,
रंग बिरंगी महक लेकर
बह रही बैरन बयार और
कुछ नए गुल खिल रहे हैं।
थम गई चारों दिशाएं,
थम गई धरती ये अंबर
छोड़ दिल अपना ठिकाना,
प्रीत की गली रम रहे हैं।
— महिमा तिवारी