कविता

चाँद जरा ठहर जा

अय चाँद जरा तुम ठहर जा
रूत प्यार की जवाँ हो जाने दो
हरसिंगार चमन में महक रही है
जरा मेरे मेहबूब को सॅवर जाने दो

अय पपिहा जरा तुँ पत्तियों में छिप जा
मेरे मेहबूब को यहाँ आ जाने तो दो
पूरवाई बयार अब मचल रही है
जरा नभ से बदरी को छँट जाने दो

अय सुबहा जरा तुम ठहर जा
अंधियारा को जग से सिमट जाने दो
सूरज पूरब में जब आ जाये
जरा मोहब्बत की कदम बहक जाने दो

अय गुलशन की कलियाँ तुम खिल जा
मधुकर को चमन में आ जाने दो
प्यार मदमस्त हो जब झूम जाये
हर कलियॉ तुम जरा संवर जाओ

अय सरिता तुम जरा ठहर जाओ
नैय्या को भॅवर से गुजर जाने दो
कहीं पॉव में ठोकर ना लग जाये
मखमली दूब को पथ पर बिछ जाने दो

अय तारे जरा आँचल में सिमट जा
नभ पे लाली को छा जाने दो
मेहबूब घूंघट में अब ना शरमाये
जरा सोोलह श्रृंगार में सज जाने दो

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088