कहानी
आइए कहानी की कहानी जानते है
कहानी की व्यथा भी सुनते हैं,
कहानी की पीड़ा का अहसास करते हैं।
कहानी की कहानी भी
बहुत सुखद नहीं है,
कहानी के जीवन में भी
दुख दर्द कम नहीं है।
जब जिसने जैसा चाहा
कान उमेठ देता है,
दुख दर्द, पीड़ा, करुणा, घटना ,दुर्घटना
शालीनता, अश्लीलता, षड्यंत्र
हत्या, आत्महत्या, छलकपट,
दंगा, फसाद, जाति धर्म, ऊँच नीच
धर्म अधर्म, भ्रष्टाचार, व्यभिचार
राजनीति, आरोप, प्रत्यारोप
बेझिझक घुसेड़ देते हैं,
कहानी मौन होकर
सब कुछ सह लेती है।
कहानी अपनी कहानी
कहे भी तो किससे कहे
उसकी भला कौन सुनेगा?
इसलिए कलेजे पर पत्थर रख
सब कुछ ही सह लेती है,
हरेक की कहानी में अपने वजूद से ही
कहानी बहुत खुश हो लेती है,
लिखने ,कहने वाला जैसे चाहता है
कहानी उसी में ढल लेती है,
अपने वजूद में ही खुश रहती है।