चेतावनी
”आप कौन हैं अंकल?” खटखटाते हुए दरवाजे को खोलकर अनूप ने एक अनजान आदमी को देखकर पूछा था.
”तेरी मां का आशिक!” और वह 12 साल के अनूप को धकेलकर सीधा उसकी मां के कमरे में चला गया था.
”तू आई क्यों नहीं—–?” गालियों की बौछार करते हुए उसने पूछा था. ”जानती है —– कितनी बड़ी डील मेरे हाथ से निकल गई?”
और भी बहुत कुछ चलता रहा था. गाली-गलौज, मारधाड़. फिर झिर्री से अनूप जो कुछ देख पाया, वह नाकाबिले बर्दाश्त था.
”मां की गर्दन पर इतना बड़ा चाकू!—–” डरे हुए दिल ने उसे डराने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
”क्या सोच रहा है? जानता नहीं, कि तेरी मां नहीं बची तो तू भी नहीं बच पाएगा, तू इकलौता चश्मदीद गवाह जो है!” दिमाग ने तुरंत चेतावनी दी.
”दिमाग की चेतावनी से ही तुरंत बाहर से दरवाजा बंद करके मैं पुलिस को फोन कर पाया था! मां की मौत का मलाल तो है ही और ताउम्र रहेगा भी, पर पुलिस मौका-ए-वारदात पर कातिल को रंगे हाथों पकड़ पाई थी.” समय पर समुचित चेतावनी के लिए उसने दिमाग को शुक्रिया कहा.