लघुकथा

चेतावनी

”आप कौन हैं अंकल?” खटखटाते हुए दरवाजे को खोलकर अनूप ने एक अनजान आदमी को देखकर पूछा था.
”तेरी मां का आशिक!” और वह 12 साल के अनूप को धकेलकर सीधा उसकी मां के कमरे में चला गया था.
”तू आई क्यों नहीं—–?” गालियों की बौछार करते हुए उसने पूछा था. ”जानती है —– कितनी बड़ी डील मेरे हाथ से निकल गई?”
और भी बहुत कुछ चलता रहा था. गाली-गलौज, मारधाड़. फिर झिर्री से अनूप जो कुछ देख पाया, वह नाकाबिले बर्दाश्त था.
”मां की गर्दन पर इतना बड़ा चाकू!—–” डरे हुए दिल ने उसे डराने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
”क्या सोच रहा है? जानता नहीं, कि तेरी मां नहीं बची तो तू भी नहीं बच पाएगा, तू इकलौता चश्मदीद गवाह जो है!” दिमाग ने तुरंत चेतावनी दी.
”दिमाग की चेतावनी से ही तुरंत बाहर से दरवाजा बंद करके मैं पुलिस को फोन कर पाया था! मां की मौत का मलाल तो है ही और ताउम्र रहेगा भी, पर पुलिस मौका-ए-वारदात पर कातिल को रंगे हाथों पकड़ पाई थी.” समय पर समुचित चेतावनी के लिए उसने दिमाग को शुक्रिया कहा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244