बीता साल हूं मैं
मुझे विदा दे दो, कि गुनहगार हूं मैं,
रहना चाहता हूं, मगर लाचार हूं मैं,
सुनता रहा हूं कि होते हैं प्रेम के पुजारी भी,
जो खुद का भी हो न सका वही व्यापार हूं मैं.
मैंने झेला है कोविड को, किसानों को भी,
बाढ़-झंझावात विकट तूफानों को भी,
आंखें मेरी जो देखना नहीं चाहती थीं,
देखा है झुलसते हुए जवानों को भी.
मैं कब चाहता था विवाद होते रहें!
महंगाई की मार से आम लोग रोते रहें,
मंज़र वह भी मुझे देखना पड़ा,
बेबस-से लोग ताकते रहे, कुछ चैन से मगर सोते रहे.
चाहा बहुत कुछ देना मैंने अपने हाथ से,
दे दी खुशखबरी 21 साल के इंतजार से,
ताज पहनाया था मैंने हरनाज संधू को,
रो पड़ी थीं सबकी आंखें खुशी के इजहार से.
खेलों भी बहुत-से धमाके हुए,
ओलिम्पिक के शानदार निशाने हुए,
हारा भी मैं कहीं तो कहीं जीता भी,
यादगार रहे कुछ लम्हे बस गए सबके दिलों में,
कुछ लम्हे अपने होकर भी बेगाने हुए.
विदा दो कि बाल-बाल ख़तावार हूं मैं,
याद रखना चाहो तो रखना, आभार हूं मैं,
भुला दोगे तो भी कोई गम नहीं,
हर बार की तरह बीता साल हूं मैं,
हर बार की तरह बीता साल हूं मैं,
हर बार की तरह बीता साल हूं मैं.