गज़ल
अपनी-अपनी ख्वाहिशों की आग में जलता मिला
इस गज़ब की भीड़ में हर आदमी तनहा मिला
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सुबह से लेके शाम तक जिसने हंसाया लोगों को
रात को पर्दे के पीछे वो मुझे रोता मिला
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तेज़ होते हैं बहुत नाखून इस ज़ालिम वक्त के
थोड़ा बहुत हर एक का ही दिल यहां टूटा मिला
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सबने कहा था इश्क ना करना बड़ा पछताएगा
पर समझ आया तभी जब घाव ये गहरा मिला
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शायद मेरी किस्मत में ही ना थी दौलत-ए-वफा
मुझको तो बस दोस्ती के नाम पर धोखा मिला
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।