दरवाज़े पर दस्तक हुई।
कौन है? पूछने पर जवाब आया ,
मैं धूप का टुकड़ा हूँ,
कुछ देर ही ठहरा हूँ।
जल्दी से मनीप्लांट मेरे पास रख दो,
कुर्सी रखकर बैठ जाओ, थोड़ी सांस भर लो।
अभी शीत का मौसम है, ठंडी हवाओं का रुख है,
तभी तक मुझसे मोहब्बत है।
तुम्हें इसलिए बुला रहा हूँ क्योंकि
अब घरों में मेरे भरपूर आने के रास्ते बंद हैं,
महानगरों में फ्लैट के पैबंद हैं, मजबूरी की पसंद है।
जब ग्रीष्म ऋतु आ जाएगी,
तब मेरे कितने टुकड़े बिखरे होंगे।
उस समय तुम मुझे भूलकर ठंडी छांव ढूंढो़गे।
पर मैं तो आता रहूंगा, दरवाजा़ खटखटाता रहूंगा,
क्योंकि मैं एक धूप का टुकड़ा हूँ, कुछ देर ही ठहरा हूँ।
— डॉ. अमृता शुक्ला