कविता

जनवरी की ठंड

नववर्ष के साथ कहें
या जनवरी के साथ
या फिर दोनों साथ साथ आते।
मगर विडंबना देखिये
दोनों नया संसार, विचार भी लाते
पर हाय रे जनवरी और नववर्ष
तुम जरा भी नहीं शर्माते
कड़ाके की ठंड, शीतलहर
अपने साथ लाते
दोष एक दूजे पर लगाते,
कितना हठ दिखाते,
पर दोनों यह भी नहीं सोचते
एक दूजे के बिना
अस्तित्व विहीन हो तुम दोनों।
और तो और तुम्हें हमारी भी
तनिक चिंता नहीं है
अपने पर बड़ा गुमान है
तुम दोनों खुद को खुदा समझते
हमारी बेबसी पर तरस कभी नहीं खाते
हमारी दिनचर्या पर प्रभाव डालते।
कमजोर, निर्धन, असहायों के लिए
ठंड किसी काल से कम नहीं होता
तुम दोनों तनिक विचार करते
हमारे जले पर नमक तो न छिड़कते।
जनवरी की जानलेवा ठंड से
अपनी बदनामी तो न कराते
नववर्ष और जनवरी दोंनो एक दूजे को
अपने साथ साथ तो बदनाम न करते
कम से कम हमें. तो बख्श देते।
हम भी मजबूर हैं क्या कर सकते हैं
ठंड से बचने की खातिर
उपाय करते रहते हैं,
जनवरी तुम आते और चले जाते हो
हम जान भी नहीं पाते हैं,
तुम्हारे जाने के बाद ही हम
ठंड के कारण तुम्हें याद कर लेते हैं
कसम देते हैं तुम्हें
अगले साल नववर्ष के साथ ही आना
मगर ठंड के गले में पट्टा डाल
कहीं दूर बाँध कर आना,
तब हम भी जी भरकर खुशियां मनाएंगे।
तुम्हें ठंड के कारण नहीं
सिर्फ़ जनवरी माह के कारण
नववर्ष के साथ तुम्हारे आगमन का
हंसी खुशी तुम्हारे स्वागत में
पलक पाँवड़े बिछाएंगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921